अपनी काबिलियत पर शक हो, तो क्या करें? रेजिना कैसेंड्रा ने पूछा सद्‌गुरु से

अगर कोई काम करने से पहले मन में शक उठने लगें, तो क्या करना चाहिए? क्या खुद पर भरोसा करके आगे बढ़ते जाएं? जानते हैं सद्‌गुरु से।

रेजिना: मेरे ख्‍याल से बहुत सारे बच्‍चों में और बड़े होने के बाद भी मेरे दिमाग में अपने बारे में, अपनी काबिलियत और अपनी क्षमताओं के बारे में ढेर सारे सवाल रहे हैं। आत्‍म–संदेह जैसी चीज निश्चित रूप से मेरे लिए एक समस्‍या रही है जिसे मैंने शायद झेला और उस पर काबू पाया है। मगर मैं इस पर आपकी राय भी जानना चाहूंगी। हम आत्‍म-संदेह पर काबू कैसे पा सकते हैं? खास तौर पर एक युवा के रूप में।

सद्‌गुरु: नमस्‍कारम रेजिना।

खुद पर शक होना अच्छा है

मैं जानता हूं, हर कोई आपसे कहता है, ‘खुद पर भरोसा करें, खुद पर भरोसा करें।’ मैं कहूंगा, ’कृपया खुद पर संदेह(शक) कीजिए।’ आपके जीवन में जो भी सही या गलत हो रहा है, आपको पहली चीज ये देखनी चाहिए कि कहीं ये मेरी वजह से तो नहीं हो रही। उसे ध्‍यान से देखिए, अगर कारण आप नहीं हैं, फिर हम दूसरों को देखेंगे।

मैं चाहता हूं कि हर किसी के अंदर थोड़ा आत्‍म-संदेह(खुद पर शक) होना चाहिए।
तथाकथित आत्‍मविश्‍वासी मूर्ख हर किसी के ऊपर पैर रखते हुए चलते हैं। खुद पर विश्वास या किसी भी प्रकार का विश्‍वास आपके अंदर स्‍पष्‍टता के बिना आत्‍मविश्‍वास लाएगा। इस धरती और हमारे आस-पास के जीवन को जो नुकसान पहुंचा है, सब कुछ स्‍पष्‍टता रहित आत्‍मविश्‍वास के कारण है। अगर आप जो कर रहे हैं, उसे लेकर आपके अंदर थोड़ा संदेह होता, तो आप कुछ करने से पहले दस बार सोचते, है न? और फिर यह एक समझदारी भरी दुनिया होती। मैं चाहता हूं कि हर किसी के अंदर थोड़ा आत्‍म-संदेह(खुद पर शक) होना चाहिए।

मनोवैज्ञानिक विकास को शरीर के विकास से हमेशा आगे होना चाहिए
खैर, शारीरिक और मनोवैज्ञानिक विकास पर आते हुए, जब हम बड़े होने की बात करते हैं, तो एक इंसान के कई आयाम हैं। एक इंसान का शारीरिक विकास, मनोवैज्ञानिक विकास होता है, विकास के भावनात्‍मक और अन्‍य आयाम होते हैं। अधिकतर हम शारीरिक विकास को मापते हैं और अगली संभावना मनोवैज्ञानिक तौर पर होती है।

अगर लोगों में विकास को लेकर समस्‍याएं होती हैं, तो इसकी मुख्‍य वजह यह है कि उनका मनोवैज्ञानिक विकास उनके शारीरिक विकास से एक कदम आगे नहीं है।
देखिए शरीर एक बहुत मूर्त(ठोस) तत्‍व है, इसलिए वह एक खास रफ्तार से बढ़ता है। कुछ लोगों में थोड़ा तेज़ या धीमे मगर वह एक खास रफ्तार से बढ़ता है। मगर आपका मनोवैज्ञानिक आयाम इतनी मूर्त(ठोस) प्रक्रिया नहीं है। वह एक अमूर्त प्रक्रिया है, अधिक लचीली, अधिक चंचल या अनिश्चित, इसलिए उसे आपकी शारीरिक प्रक्रिया से काफी तेज गति से बढ़ना चाहिए। अगर लोगों में विकास को लेकर समस्‍याएं होती हैं, तो इसकी मुख्‍य वजह यह है कि उनका मनोवैज्ञानिक विकास उनके शारीरिक विकास से एक कदम आगे नहीं है। समाज में ऐसे हालात बनाने होंगे, जहां मनोवैज्ञानिक विकास हो तो, हालांकि इस धरती पर हमेशा से अरबों-खरबों लोगों के साथ एक ही चीजें होती रही हैं, फिर भी ऐसा लगता है कि यह दुनिया में पहली बार हो रहा है और लोग हैरान और हक्के-बक्के होते हैं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि उनका मनोवैज्ञानिक विकास उनके शारीरिक विकास से पीछे है। यह बहुत महत्‍वपूर्ण है कि समाज में हम ऐसे हालात बनाएं जहां हर बच्‍चा मनोवैज्ञानिक तौर पर अपने शारीरिक विकास से कम से कम एक कदम आगे हो। अगर आप ऐसा करते हैं… अपने जीवन में सिर्फ यह एक चीज करते हैं, तो आप देखेंगे कि चाहे वह किशोरावस्‍था हो, अधेड़ उम्र या वृद्धावस्‍था, आप किसी भी चीज़ से हैरान नहीं होंगे, आप जान जाएंगे कि उस स्थिती में क्या करना है, और सरल प्रक्रियाओं के कारण आपके जीवन में कोई झटके नहीं लगेंगे या उथल-पुथल नहीं होगी।

जीवन कोई समस्‍या नहीं है, जीवन एक खास प्रक्रिया है। सवाल बस यह है कि आपने खुद को इस प्रक्रिया के लिए तैयार किया है या नहीं?
फिलहाल लोग इस तरह से जी रहे हैं कि बच्‍चों को डायपर की समस्‍याएं हो रही हैं, किशोरों को हारमोन की समस्‍याएं हो रही हैं, अधेड़ उम्र के लोग मिडल एज क्राइसिस से गुज़र रहे हैं और बूढ़े लोग भी साफ तौर पर कष्‍ट झेल रहे हैं। मुझे जीवन का एक आयाम बताइए जिसे लोग एक समस्‍या की तरह नहीं देख रहे। जीवन कोई समस्‍या नहीं है, जीवन एक खास प्रक्रिया है। सवाल बस यह है कि आपने खुद को इस प्रक्रिया के लिए तैयार किया है या नहीं?

संपादक का नोट : चाहे आप एक विवादास्पद प्रश्न से जूझ रहे हों, एक गलत माने जाने वाले विषय के बारे में परेशान महसूस कर रहे हों, या आपके भीतर ऐसा प्रश्न हो जिसका कोई भी जवाब देने को तैयार न हो, उस प्रश्न को पूछने का यही मौक़ा है!

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