गुरु की मौजूदगी में कैसा अनुभव होता है? – गुरु पूर्णिमा 2018

गुरु के सानिध्य में कैसा अहसास होता है? क्या उनके सानिध्य में बने रहने की इच्छा उठती है? जानते हैं सद्‌गुरु से।

सद्‌गुरु : आजकल चारों तरफ गुरु के बारे में बहुत चर्चा होती है. इन दिनों समाज में आपको हर तरह के गुरु देखने को मिल जाएंगे – कंप्यूटर गुरु, मैनेजमेंट गुरु आदि। आज दुनिया में गुरु शब्द अपना महत्व खो चुका है, क्योंकि क्योंकि समाज में गुरु शब्द का इस्तेमाल हर कहीं किया जा रहा है।

गुरु के ‘गु’ का अर्थ है अंधेरा या अंधकार और ‘रु’ शब्द का अर्थ है दूर हटाना। यहां अंधकार का आशय(मतलब) अज्ञानता से है। आपकी अज्ञानता का आधार आपकी गलत पहचान है। आपने उन चीजों के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर रखी है, जो वास्तव में आप हैं ही नहीं। आमतौर पर इसे पागलपन कहते हैं।

खुद को शरीर समझना भी पागलपन है
उदाहरण के लिए अगर आप मानसिक चिकित्यालय में जाएं, तो हो सकता है आपको बगीचे में एक आदमी खड़ा मिल जाए, जो ये मानता है कि वो एक पेड़ है। हर शाम अस्पताल के कर्मचारियों को उसे भीतर लाना पड़ता है, क्योंकि बिना बुलाए वह अपने आप भीतर नहीं आएगा और सारा समय यूं ही खड़ा रहेगा। लेकिन सुबह जैसे ही अस्पताल के कमरे का दरवाजा खुलेगा, वह तुरंत भागकर बगीचे में जाकर पेड़ की तरह खड़ा हो जाएगा। इसे ही पागलपन कहते हैं, है न?

जो आप हैं, उससे अलग हटकर अपने बारे में विश्वास करना ही पागलपन है। फिलहाल आप की समस्या भी यही है। आपको लगता है कि आप शरीर हैं। यह सोच भी उतनी बुरी है। आपको लगता है कि आपके विचार ही आप हैं, आपकी सोच ही आप हैं और आपकी भावनाएं ही आप हैं। आप किसी भी चीज और हर चीज के रूप में खुद की पहचान बना लेते हैं। यही अज्ञानता हैं। इस अज्ञानता को जो हटाता है, वही गुरु है।

गुरु की मौजूदगी का अनुभव
जब आप उसकी मौजूदगी में बैठते हैं तो आपको पता नहीं होता कि क्या कहा जाए या क्या सोचा जाए। आप उस वक्त इतने अभिभूत(ओवरवेल्म) होते हैं। आप खुद को एक निरा मूर्ख समझते हैं। अगर ऐसा है तो यह अच्छी बात है, इसका मतलब है कि चीजें काम कर रही हैं। उनकी मौजूदगी में अचानक आपकी सारी पहचान बेवकूफी लगने लगती है। वे सारी चीजें, जिन पर आपको काफी गर्व था और सार्वजनिक(पब्लिक) तौर पर जो आपको महानता का अहसास कराती थीं, अचानक आपको वे सारी चीजें मूर्खता लगने लगती हैं। यह अच्छी बात है।

अगर आप उन्हें बहुत ज्यादा पसंद करते हैं तो वह आपके गुरु नहीं हो सकते, क्योंकि अगर आप उनके साथ बहुत ज्यादा सहज हैं तो आप उनके नजदीक आना चाहेंगे। लेकिन अगर आपको गुरु के साथ होने पर इतने अभिभूत(ओवरवेल्म) हो उठते हैं कि आप उनसे दूर भागना चाहते हैं, लेकिन आपके भीतर कोई ऐसी चीज है, जो आपको उनकी ओर खींचती है तो वह आपके गुरु हैं। आपको लगातार उनसे डर लग रहा हो, और फिर भी आप उनकी मौजूदगी में रहना चाहते हों तो वह आपके गुरु हैं।

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