छोटी छोटी चीज़ों में उलझी जिंदगी को कैसे सुलझाएं?

एक खोजी शेरिल सिमोन ने अपनी रोचक जीवन-यात्रा को ‘मिडनाइट विद द मिस्टिक’ नामक किताब में व्यक्त किया है। इस स्तंभ में आप उसी किताब के हिंदी अनुवाद को एक धारावाहिक के रूप में पढ़ रहे हैं। पेश है इस धारावाहिक की अगली कड़ी जिसमें वे भाग्य को अपने हाथ में लेने के बारे में चर्चा कर रही हैं।…

‘तो अपने भाग्य को पूरी तरह अपने हाथ में लेने के लिए हमें क्या करना होगा?’ मैंने सद्‌गुरु से पूछा। ‘मैंने किसी महिला को आपसे अपने विचारों पर काबू करने के बारे में सवाल करते सुना था। वे कह रही थीं कि किस तरह से उनके विचार उनके काबू में न रहकर बिना कारण हर दिशा में दौड़ते रहते हैं। हममें से अधिकतर लोगों के लिए यह सही है। मैंने आपको जवाब देते सुना था कि हम तब तक अपने विचारों पर काबू नहीं कर पाएंगे जब तक हम खुद को चीजों के एक ढेर के रूप में देखते रहेंगे – हमारा शरीर, हमारा मन, कामकाज और परिवार। सुनकर लगा था मानो आप कह रहे हों कि इन सबका हमारे भाग्य पर काबू करने से कोई संबंध है। क्या आप यह बात समझा सकते हैं?’

बाहरी स्थितियों से मिलने वाला आनंद आपका अपना नहीं होता
‘जैसे ही आप खुद को उन सब चीजों से जुड़ा मानती हैं, जो कि आप नहीं हैं, तो आप इन विचारों को नहीं रोक सकतीं। भौतिक शरीर से शुरू करके जो कि एक गठरी है, मन, भावनाएं, चीजें, लोग – आपने इतनी सारी झूठी पहचानें जोड़ ली हैं कि उनका सिलसिला कभी खत्म ही नहीं होता।’

‘लोग इन झूठी पहचानों के साथ अपने संबंधों को समझ नहीं पाते। आप इस हाल में खुशी पा सकती हैं। बाहरी स्थितियों के कारण आपको थोड़ा आनंद मिल सकता है, लेकिन अधिकतर लोगों के लिए केवल ‘स्वयं’ रहकर पूरी तरह आनंदमय होना संभव नहीं हो पाता। इस स्थिति में आनंद कुछ बाहरी चीजों के कारण है, आपका अपना नहीं।’

खुशहाली और आध्यात्मिक उन्नति के लिए अलग-अलग साधना करनी होगी
मैंने कहा, ‘सद्‌गुरु, मेरी जान-पहचान के अधिकतर लोग एक भरा-पूरा जीवन चाहते हैं। सही जीवनसाथी, सुंदर दृष्य, भरपूर संपत्ति। मुझे भी यह सब पसंद है। पर मैं जानती हूं कि हम खुद को कम आंक रहे हैं। मुझे लगता है कि इससे आगे भी काफी कुछ हम पा सकते हैं।’ ‘निश्चित रूप से बहुत कुछ पा सकती हैं। आवश्यक साधना करने पर आप तन, मन और ऊर्जा पर कुछ हद तक काबू कर सकती हैं। अगर कोई आध्यात्मिक परिणाम पाना चाहता है, तो उसे और अधिक नियंत्रण करना होगा, उसे और निपुणता हासिल करनी होगी। लेकिन यदि आप केवल भौतिक सुख चाहती हैं, तो थोड़े-बहुत नियंत्रण से काम चल जाएगा और इसको हासिल करना बड़ा आसान है।’

जीवन ऊर्जा को तीव्र कर लेने से मनचाही चीज़ें रची जा सकती हैं
‘मुझे अभी भी लगता है कि केवल आरामदेह जीवन जीने की कोशिश में हम अपना मूल्य घटा रहे हैं,’ मैंने कहा। ‘अपने तन-मन पर थोड़े-से नियंत्रण से ही आप ये सब चीजें आसानी से पा सकती हैं। यदि आप अपनी जीवन-ऊर्जा को एक खास स्तर से ऊपर उठाकर तीव्र कर लें तो ये आपके तन और मन से अधिक प्रबल हो जाएगी और तब आप बिना मेहनत के अपना मनचाहा रच पाएंगी। अपना जीवन उस पर जरा भी खपाये बिना आपकी चाही हर भौतिक वस्तु आपके कदमों में होगी। इसमें आपका जरा भी समय नष्ट नहीं होगा। सफल लोग वे होते हैं जो अपने मन पर कुछ हद तक नियंत्रण कर पाते हैं। वे किसी भी काम में खुद को एक विशेष रूप में दूसरों से अधिक लगा पाते हैं। वैसे सबसे अच्छा तो यह होगा कि आप चाहने की विवशता के पार निकल जाएं, वरना आप बहुत-सी अनावश्यक चीजों का निर्माण करके इस धरती का संतुलन बिगाड़ देंगी,’ सद्‌गुरु ने कहा।

मैंने कहा, ‘मैं हताश हूं, क्योंकि जब मैं अपने जीवन में एकाग्रचित्त हो पाई, तब बहुत-सी ऐसी बाहरी चीजें करवा सकी जो मैं होते देखना चाहती थी, लेकिन मेरे भाग्य में कुछ भी आध्यात्मिक करवाना नहीं लिखा था।’

सृष्टि के स्रोत को अपने भीतर अनुभव करना होगा
‘आप अब तक केवल छोटी-छोटी चीजें ही कर पायी हैं, बड़ी चीजें नहीं। जरूरत इस बात की है कि आप बड़ी-बड़ी चीजें करने की काबिलियत हासिल करें। यदि एक पल के लिए आप यह अनुभव करें कि सृजन का स्रोत आपके भीतर है और अपनी एकाग्रता को आप खुद में केंद्रित कर लें, तो आप अपने भाग्य को दोबारा अपने हाथों से लिख सकती हैं।’

निश्चित रूप से मैं बड़ी-बड़ी चीजें नहीं कर पाई थी। सद्‌गुरु मुझे याद दिला रहे थे कि मेरे स्वास्थ्य में इतना सुधार कितनी महत्वपूर्ण बात है। मैं उसका मूल्य कम नहीं करना चाहती थी। यदि आपका स्वास्थ्य ठीक नहीं है तो उस पर सबसे पहले ध्यान देना होता है। शक्तिहीन और पीड़ा से कराहते रहने के कारण ईशा के अभ्यास मेरे लिए शुरू में बड़ी मुश्किल होती थी। अब उस समस्या के न होने के कारण मैं योग के सूक्ष्म आयामों का और अधिक अनुभव कर पा रही हूं। लेकिन इस कारण से अपने अस्तित्व की सारी संभावनाओं को पा लेने की इच्छा बड़ी तेज हो गयी है।

कार के तेजी से दौड़ते समय मैं धुंधलाते दृश्यों पर अधिक ध्यान नहीं दे पा रही थी। लेकिन अब हम दो लेन वाले हाइवे पर थे और उत्तर ज्यॉर्जिया पर्वतों के करीब पहुंचने वाले थे। लहलहाते हरे-भरे खेत, कही-कहीं कटी हुई फसल की सुनहरी गोल गड्डियां और चारों तरफ पर्वतों के धुंधलके से घिरे थे हम। एक जगह रुककर हमने कन्वर्टिबल के ऊपरी छाजन को हटा दिया। जब हम अटलांटा से निकले थे तब तापमान पैंतीस डिग्री सेल्सियस था और आसमान सफेद, पर यहां कम-से-कम पांच डिग्री कम था और हवा में नमी नहीं थी। आसमान बहुत सुंदर और नीली दमक लिए हुए था।

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