क्या हमारी जिम्‍मेदारी की कोई सीमा है?

जिम्‍मेदारी की सरहदों को हटा देंगे तो आप से जो भी संभव होगा, अवश्य कर देंगे। जो काम आप से संभव नहीं है, उसे आप कर नहीं सकते। लेकिन आपसे जो काम हो सकता है उसे जरूर कर देंगे।

यह सही है कि जिम्मेदारी की कोई सीमा नहीं, लेकिन आपकी कार्यशक्ति सीमित होती है। भले ही आप ‘सुपरमैन’ हों, आपकी काम करने की क्षमता एक सीमा के अंदर होती है। जिम्मेदारी अलग चीज है और आप क्या कर सकते हैं अलग चीज है। जो लोग दोनों के बीच का अंतर नहीं समझ पाते, वे जिम्मेदारी का नाम लेते ही तनाव में आ जाते हैं।

आप अपनी क्षमता के अंदर ही कार्य कर सकते हैं। आप किसी दूसरे व्यक्ति के समान काम नहीं कर सकते। क्योंकि उनकी क्षमता अलग तरह की है। आपकी बुद्धि, क्षमता, परिवेश जैसे अनेक मानदंडों के आधार पर आपके कार्य का निर्णय किया जाता है। लेकिन जिम्मेदारी लेने का निर्णय आपकी इच्छा पर ही है। वहां और कोई अड़चन नहीं है। जिम्मेदारी को काम के रूप में समझने की वजह से वह भार जैसा लगता है।

तो क्या आप सारे कामों को कर सकते हैं? कई मौकों पर आप कुछ भी किये बिना बैठे रहे, वह भी तो जिम्मेदारी ही है। लेकिन उत्तरदायित्व लेने की भावना से आपकी कार्यशक्ति सहज रूप से विकसित होती है। तब कोई हिचकिचाहट नहीं होती।

सडक़ पर खेल रहा आपका बच्चा अगर गिर पड़े, तो भागे-भागे जाकर उसे उठाकर अपने आगोश में ले लेंगे। उस समय आपके अंदर कोई हिचकिचाहट नहीं होगी। क्यों? क्योंकि आपने उसकी पूरी जिम्मेदारी ले रखी है। लेकिन पड़ोसी के बच्चे के गिर जाने पर कुछ लोग मूर्खतापूर्ण ढंग से हिसाब-किताब लगाते हैं, ‘क्या मैं उसके लिए जिम्मेदार हूं?’

जिम्मेदारी का अनुभव करने पर उस परिस्थिति में जो काम किए जाने की जरुरत होगी, उसे अपनी बुद्धि का उपयोग करके आप निश्चित रूप से कर देंगे। इस तरह परिस्थिति के अनुरूप काम का चयन करके निर्णय लेने की पूरी आजादी आपको है। जिम्मेदारी की सरहदों को हटा देंगे तो जो भी आपसे संभव होगा अवश्य कर देंगे। जो काम आप से संभव नहीं है उसे आप कर नहीं सकते। लेकिन आपसे जो काम हो सकता है उसे जरूर कर देंगे। जब कोई ऐसा सोचता है, ‘मैं इसके लिए जिम्मेदार नहीं हूं’ तब वह उस काम को भी नहीं करेगा, जो उससे हो सकता है। इस तरह के जीवों के जि़ंदा रहने का प्रयोजन ही क्या है? अपनी जिम्मेदारी का अनुभव करने से आपके कार्य करने का बटन आपके हाथ में आ जाता है। आपकी संपूर्ण क्षमता आपके अंदर से प्रकट होती है। जब आप अपनी संपूर्ण क्षमता से सक्रिय होते हैं, सदा ही आनंद से रहेंगे, पूर्णता में रहेंगे। यह जरूरी नहीं कि आप यहां बताई किसी भी बात पर विश्वास करें। इनका अपने जीवन में प्रयोग करके देख सकते हैं।

‘जिम्मेदारी की कोई सीमा नहीं होती’ यह न कोई महावाक्य है न ही कोई उपदेश। यह बुनियादी सच्चाई है। आप इस सच्चाई की जांच कर सकते हैं। आजमाकर देखिए कि यह कारगर है या नहीं। अगर यह काम करे तो इसे स्वीकार कीजिए। काम नहीं करता तो कल से आप अपनी जिम्मेदारी को छोड़ सकते हैं।

एक प्रयोग करके देखिए। इसी क्षण से लेकर अगले चौबीस घंटे तक, आप चाहे जहां भी हों, ‘मेरी जिम्मेदारी की कोई सीमा नहीं है’ इस विचार का मन ही मन अनुभव करते रहिए। प्रत्येक घटना का बोधपूर्वक उत्तर देते रहिए। सुबह का नाश्ता करते समय ध्यानपूर्वक उसे उत्तर दीजिए। अंदर खींचने वाली सांस के लिए सडक़ पर चलते समय नजर में आने वाले पेड़ के लिए, घर में शरारत करते बच्चे के लिए ‐ इस तरह हरेक के लिए ‘मैं जिम्मेदार हूं-मेरी जिम्मेदारी की कोई सीमा नहीं है’ – ऐसा अपनी चेतना में अनुभव करके देखिए।

जब आप अनुभव करेंगे कि मेरी जिम्मेदारी की वास्तव में कोई सीमा नहीं है, तो अपने अंदर कई परिवर्तनों का एहसास होगा। मैंने अनेक लोगों को देखा है जो मन के स्तर पर ही नहीं, बल्कि शरीर के स्तर पर भी कई समस्याओं से मुक्त हो गए हैं। इसके लिए उन्होंने किसी तरह का शारीरिक व्यायाम नहीं किया। डाक्टरों ने जिन्हें शल्य चिकित्सा का परामर्श दिया, ऐसे लोगों ने ‘मेरी जिम्मेदारी असीम है’ इसे चेतना के स्तर पर निरीक्षण करने मात्र से अपने स्वास्थ्य में आश्चर्यजनक रूप से सुधार कर लिया।

तो अगले चौबीस घंटे में यह प्रयोग करके देखिए। आप जहां भी रहें, अपने मन ही मन ‘मेरी जिम्मेदारी की कोई सीमा नहीं है’ ये कहते हुए निरीक्षण कीजिए। चेतनापूर्वक प्रत्येक घटना का उत्तर देना होगा। चौबीस घंटे में आपका रक्तचाप कम हो जाएगा। मन में शांति छा जाएगी। प्रेम खिल उठेगा। आनंद का स्रोत फूट पड़ेगा। इसे आप अपने अनुभव में ला सकते हैं।

तो अद्भुत जीवन की नींव रखने में विलंब न करें। आइए, अपने अंदर खिल उठिए।

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