भूत प्रेत, बुरी आत्मा के डर से कैसे पाएं छुटकारा?

एक युवा छात्र सद्‌गुरु से पूछता है कि भूतों और अलौकिक तत्वों के डर पर काबू कैसे पाएं। सद्‌गुरु का जवाब है कि अपनी कल्पना और याददाश्त से दुखी होने की बजाय अगर आपको मुफ्त में एक डरावनी फिल्म देखने को मिल रही है, तो बस उसका मजा लीजिए।

प्रश्न: सद्‌गुरु, अगर आप किसी चीज से डरते हैं, तो उस डर पर काबू कैसे पाएं। जैसे अपनी बात बताऊं तो मैं अलौकिक चीजों और भूतों से डरता हूं।

सद्‌गुरु: तो असल बात यह है कि आप एक ऐसी चीज से डरते हैं, जिसे आपने कभी देखा नहीं है। इसका मतलब यह है कि मनुष्य होने की एक बहुत महत्वपूर्ण मूलभूत सुविधा नियंत्रण से बाहर होना है। दूसरे प्राणियों के मुकाबले, इंसान की याददाश्त बहुत स्पष्ट और प्रबल होती है। हम कल घटित हुई किसी घटना का हर पहलू याद कर सकते हैं। इस याददाश्त के कारण हम समझ पाते हैं कि आज को कैसे संभाला जाए। इसे ही हम ज्ञान या सूचना कहते हैं। जिसे कल हमने समझा, ग्रहण किया या अनुभव किया था, वह आज का ज्ञान है।

यह स्पष्ट याददाश्त और असाधारण कल्पनाशक्ति मन के वे दो पहलू हैं जो हमें केंचुए, झींगुर और दूसरे जीवों से अलग करते हैं। मगर इंसान इन्हीं दो पहलुओं से कष्ट उठाता है।

ऐसी चीज़ का दुःख, जो है ही नहीं
जो चीज दस साल पहले हुई थी, उसे लेकर लोग आज दुखी होते हैं और जो चीज परसों होने वाली है, उसे लेकर पहले से दुखी रहते हैं। या मुख्य रूप से वे ऐसी चीज से दुखी हो रहे हैं, जिसका अस्तित्व ही नहीं है। वे अपनी याददाश्त और कल्पना का दुख भोग रहे हैं। यही दोनों सहूलियतें हमें इंसान बनाती हैं – आप क्रमिक विकास की प्रक्रिया का कष्ट उठा रहे हैं।

तो हो बस यही रहा है कि आप अपनी कल्पना से दुखी हैं। आप बस एक डरावनी फिल्म देख रहे हैं। क्यों न आप इसका आनंद उठाएं? समस्या यह है कि फिल्म का डायरेक्शन बहुत खराब है। आपकी याददाश्त और कल्पना नियंत्रण से बाहर हैं। नाटक अपने आप चल रहा है।

लोग कहते हैं, ‘यह इंसानी प्रकृति है।’ यह इंसानी प्रकृति नहीं है। यह उन लोगों की प्रकृति है, जिन्होंने इंसानी प्रकृति का भार नहीं लिया है। अगर आप जानते कि अपने मनोवैज्ञानिक नाटक को कैसे संभालना है, तो आप खुद को आनंदित बनाते, भयभीत नहीं। मेरी कोशिश का मूलतत्व यही है – उस नाटक में थोड़ा अर्थ लाना, ताकि आप अपने नाटक के निर्देशक बन सकें।

संपादक की टिप्पणी: शांति, प्रेम, सेहत और सफलता के लिए ‘पावर टू क्रियेट’ ध्यान (जिसे चित्त शक्ति के नाम से जाना जाता है) हम सभी को खुद अपना कीमियागर (एलकेमिस्ट) बनने में सक्षम बनाता है ताकि हम अपनी चिर संचित इच्छाओं को वास्तविकता में बदलने की क्षमता पा सकें।

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