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अनंत मतलब सिमित चीजो या बातो को व्याप्त करना या विस्तृत करना है।
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जिसे तुम चाहते हो उससे प्रेम करना नगण्य है। किसी से इसलिए प्रेम करना क्योंकि वह तुमसे प्रेम करता है यह महत्वहीन है। किसी ऐसे से प्रेम करना जिसे तुम नहीं चाहते, मतलब तुमने जीवन से कुछ सीखा है। किसी ऐसे से प्रेम करना जो तुमसे घृणा करे यह दर्शाता है की तुमने जीवन जीने की कला सीख ली।
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तुम बिलकुल पके हुए फल जैसे हो। हम सब में दैवीय गुण है लेकिन हम ना तो उनका विश्लेष्ण करते है और ना ही उनको संस्कारित करते है।
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घटनाए जो कालचक्र के चक्रव्यूह को पार कर ले, लोगो के लिए आदर्श बन जाती है।
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लगन जो अपमान झेल ले वह एकाग्रचित होकर अपना लक्ष्य प्राप्त कर लेती है।
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प्रेम जो उपेक्षा झेल ले वह क्रोध और अहंकार से मुक्त हो जाता है।
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वैराग्य की अभिव्यक्ति अहंकार का कारण बन सकती है पेड़ की जड़े जैसे छिपी रहती है वैसे ही वैराग्य को भी हृदय में छुपाकर रखो।
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अपने वैराग्य को गुप्त रखो और अपने प्रेम को प्रकट करो। वैराग्य प्रकट करने से जीवन में उत्साह तिरोहित हो जाता है और प्रेम प्रकट ना हो तो घुटन होने लगती है।
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आत्मा शोक एक मृत्यु से मुक्त है किन्तु सब सापेक्ष घटनाये इसी की गोद में घटती है।
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अपने प्रति तुंरत कोई राय ना बनाओ और अपने को अथवा अपने प्यार की अभिव्यक्ति को कोई नाम देना छोड़ दो।
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अक्सर देखा जाता है की लोग बहुत से काम दुसरो की वजह से खुद नही कर पाते है, उनके मन में बस यही ख्याल रहता है की लोग क्या सोचेगे, लोगो को छोडिये अगर हमे नाचना न भी आता है तो भी हमे नाचना चाहिए, क्यू की नाचने से अपने आप को खुशी मिलेगी वो कोई दूसरा तो दे नही सकता ना।
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लोग शर्म के मारे जो कोई फोटो खिचता है तो लोग अक्सर पीछे हो जाते है लेकिन हमे खुद फोटो खीचने के लिए हमेसा आगे आना चाहिए। और फोटो खीचने के लिए एकदम छोटे बच्चो की तरह बन जाना चाहिए और एकदम अलग अलग तरह के पोज देना चाहिए जो की हसने के लिए काफी हो, जब हम इन फोटो को कभी अकेले में देखेगे तो खुद पर हसी जरुर आएगी और जो खुशी मिलेगी शायद वो बड़कर हो।
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जब हमारे पास बहुत ज्यादा काम हो तो हमे घबराना नही चाहिए और और इन कामो को हसते हुए करते रहना चाहिए, क्यू की अगर टेंशन लेकर कोई काम करेगे तो बना हुआ भी काम बिगड़ सकता है। और जब हमे रेस्ट मिले तो भी खुश रहना चाहिए। ना की बस सोच सोच कर खुद को टेंशन में डाल ले।
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जब हमारे घर में खाने में अगर पनीर ना हो तो हमे दुखी नही होना चाहिए और ना ही खाने पर गुस्सा दिखाना चाहिए। जो मिले उसी को खाकर हमे खुस रहना चाहिए। चलो पनीर न सही दाल तो मिला ऐसा सोचकर खुश रहे तो हम जरुर अपनी लाइफ को जरुर खुद से सुखी बना सकते है।
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अगर हमारे पास बड़े बड़े गाडी और सुख सुविधा वाले साधन न हो तो हमे पैदल चलने में भी खुस रहना चाहिए, दुखी रहने से ये चीजे हमे मिल तो नही जाएगी ऐसा सोच कर हमेसा आगे बढते रहना चाहिए।