भविष्य बहुत आरामदायक है| भूतकाल की बड़ाई करना बहुत आरामदायक है| इश्वर को अब, यहाँ, देखना कठिन है| इश्वर को अपने में देखना और भी कठिन है|
“मानव” इश्वर और जानवर की प्रवृति के बीच की लड़ी है|
ज्ञानी होना लक्ष्य को पाना नहीं है| बल्कि, अज्ञानता से, सारी परेशानियों से और तनाव से छुटकारा पाना लक्ष्य को पाना है| क्योंकि हमारी मूल प्रवृत्ति ज्ञानी होना है| इसीलिए, “मानव” और “इश्वर” दो नहीं हैं| “मानव” उपरी आवरण है और “इश्वर” अंदरूनी|
मानव विकास के दो चरण हैं- कुछ होने से कुछ ना होना;और कुछ ना होने से सबकुछ होना. यह ज्ञान दुनिया भर में योगदान और देखभाल ला सकता है.
दूसरों को सुनो ; फिर भी मत सुनो . अगर तुम्हारा दिमाग उनकी समस्याओं में उलझ जाएगा, ना सिर्फ वो दुखी होंगे , बल्कि तुम भी दुखी हो जओगे.
हमेशा आराम की चाहत में , तुम आलसी हो जाते हो. हमेशा पूर्णता की चाहत में तुम क्रोधित हो जाते हो.हमेशा अमीर बनने की चाहत में तुम लालची हो जाते हो.
मन को जितना हठ योग है, मन से हार मानकर सरणागत होना प्रेम है, प्रेम मैं सदा हार ही होती है, देखो हम जिसे प्रेम करते हैं उसके सामने झुकते हैं| वह चाहे कुछ भी कहे, चाहे कुछ भी करे|
ध्यान करने से मन साफ़ होता है, जैसे पानी गंदा है पानी में हलचल है, तो हम अपना प्रतिबिम्ब नही देख पाते है, उसी तरह मन में हलचल है, तो हम अपना स्वरुप नही देख पाते, इसलिए ध्यान करना ज़रूरी ही|
“मेरे जीवन का क्या उद्देश्य है?” यह एक प्रश्न हमारे system में, हमारी आत्मा में मानवीय मौल्यों को प्रकाशित करता है| परन्तु इस प्रश्न के उत्तर को पाने में जल्दी मत करो| प्रश्न के साथ रहो| प्रश्न अपने में एक औजार है |जिसके सहारे तुम अपने अन्दर की गहरी में उतर सकते हो|
प्रभु ने आपको अपार प्रेम दिया है, घुट-घुटकर क्यों जीते हो, प्रेम से जियो।
प्रेम माँगने से कम होता है, देने से बढ़ता है| क्यों की हर व्यक्ति प्रेम चाहता है. प्रेम चाहने से नही, देने से होता है|
हम जिससे प्रेम करते हैं, उसकी हर बात बहुत ध्यान से सुनते है| उसका हर काम, हर बात बहुत ही अच्छी लगती है, सुंदर लगती है| सबसे प्रेम करो, सब सुंदर लगेंगे|
तुम्हारे अन्दर कोई भावना आई , अप्रिय भावना , और तुमने कहा , नहीं आणि चाहिए , ये फिर से नहीं आनी चाहिए . ऐसा करके तुम उसका विरोध कर रहे हो .जब तुम विरोध करते हो , वो कायम रहती है . बस देखो , ओह ! उसकी गहराई में जाओ . नाचो ; अपने पैरों पर खड़े हो और नाचो . मस्ती में रहो ; मस्ती में चलो .
“स्वयं अध्यन कर के , देख कर , खोखले और खली होकर , तुम एक माध्यम बन जाते हो – तुम परमात्मा का अंश बन जाते हो । तुम देवत्त्व की उपस्थिति को महसूस कर सकते हो । सभी स्वर्गदूत और देवता , हमारी चेतना के ये विभिन्न रूप खिलने लगते हैं ।
“तुम्हारे अन्दर कोई भावना आई , अप्रिय भावना , और तुमने कहा , नहीं आनी चाहिए , ये फिर से नहीं आनी चाहिए । ऐसा करके तुम उसका विरोध कर रहे हो ।जब तुम विरोध करते हो , वो कायम रहती है । बस देखो , ओह ! उसकी गहराई में जाओ । नाचो ; अपने पैरों पर खड़े हो और नाचो । मस्ती में रहो ; मस्ती में चलो ।“~ श्री श्री रवि शंकर