शरीर तो गिर जाता है हर मृत्यु में

सांझ आप सोते हैं। कभी आपने खयाल न किया होगा कि.. रात सोते वक्त खयाल करें, आखिरी विचार जब नींद उतरती हो, उतर ही रही हो, उतर ही गई हो, तब पकड़े अपने मन में कि आखिरी विचार क्या है। फिर सो जाएं। और जब सुबह नींद टूटे, होश आए, तब तत्काल पहली खोज करें कि सुबह जागने का पहला विचार कौन सा है। तो आप बहुत चकित होंगे। रात जो आखिरी विचार होता है, वही सुबह पहला विचार होता है। रात सोते समय जो चेतना में अंतिम विचार होता है, सुबह जागते समय चेतना में पहला विचार होता है। ठीक ऐसे ही मरते वक्त जो अंतिम वासना होती है, वह जन्म लेते वक्त पहली वासना होती है।
शरीर तो गिर जाता है हर मृत्यु में, लेकिन मन चलता चला जाता है। तो आपके शरीर की उम्र हो सकती है पचास साल हो, लेकिन आपके मन की उम्र पचास लाख साल हो सकती है। आपने जितने जन्म लिए हैं, उन सभी मनों का संग्रह आपके भीतर आज भी मौजूद है, अभी भी मौजूद है। बुद्ध ने उसे बहुत अच्छा नाम दिया है। पहला नाम बुद्ध ने ही उसको दिया। उसे उन्होंने नाम दिया, आलय—विज्ञान। आलय—विज्ञान का अर्थ होता है स्टोर हाउस आफ कांशसनेस। स्टोर हाउस की तरह आपने जितने भी जन्म लिए हैं, वे सभी स्मृतियां आपके भीतर संगृहीत हैं।
आपका मन बहुत पुराना है। और ऐसा भी नहीं है कि आपके पास जो मन है वह सिर्फ मनुष्य—जन्मों का है। अगर आपके पशुओं में जन्म हुए, जो कि हुए; अगर आपके वृक्षों में जन्म हुए, जो कि हुए; तो वृक्षों की स्मृति, पशुओं की स्मृति, वे सभी स्मृतियां आपके भीतर मौजूद हैं। जो लोग आलय—विज्ञान की प्रक्रिया में गहरे उतरते हैं, वे कहेंगे कि अगर किसी व्यक्ति को गुलाब के फूल को देखकर अचानक प्रेम उमड़ता है, तो उसका गहरा कारण उसका गहरा कारण यही है कि उसके भीतर गुलाब के होने की कोई गहरी स्मृति आज भी शेष है, जो समतुल, जो रिजोनेंस, जो गुलाब को देखकर प्रतिध्वनित हो उठती है।
ईशावास्‍य उपनिषद–प्रवचन–11
 

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