मैं चाहता हूं कि जो मुझसे जुड़े हैं, वे एक बात अच्छी तरह समझ लें। न तुम्हारे वस्त्र , न तुम्हारी बाहरी शिक्षा , न तुम्हारे विस्वास जो तुमने परम्परा से ग्रहण किये हैं, कोई काम नही आएंगे। एक ही चीज जो भीतर क्रांति ला सकती है वह है मन के पार चेतना के जगत में प्रवेश। सिवाय इसके और कोई धार्मिक कृत्य नहीं है। लेकिन और अन्य बातों के साथ मुझे संन्यास भी आरम्भ करना पड़ा क्योंकि सुरुआत थी औऱ वह भी ऐसी दुनिया में जो बाहरी चीजों से अधिक ग्रस्त है। मुझे कहना पड़ा गेरुआ वस्त्र पहनो, माला पहनो, ध्यान करो, परंतु इन सब बातों में जोर तो केवल ध्यान पर ही था।
लेकिन मैंने देखा लोग कपड़े तो बहुत आसानी से बदल लेते हैं, परंतु अपनी धारणाएं नही बदल सकते। वे माला तो पहन लेंगे , लेकिन चेतना में प्रवेश नही करेंगे। औऱ क्योंकि उन्होंने गेरुए वस्त्र धारण कर लिये हैं, माला पहन ली है, नया नाम मिल गया है, वे समझने लगे हैं कि अब सन्यास हो गया है।
संन्यास इतना सस्ता नही है। और अब समय आ गया है, अब तुम इतने प्रौढ़ हो चुके हो यह समझने के लिए की वह सुरुआत का समय खत्म हो चुका । अगर तुमने गेरुआ रंग, लाल रंग अच्छा लगता है तो बढ़िया, उससे कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन वह किसी काम का नही है। अगर तुम्हें मेरा चित्र लगी माला से प्रेम है तो ठीक, लेकिन वह तुम्हारे लिए एक आभूषण से कम नही है। उसका धर्म से कोई लेना देना नही है।
इसलिये अब मेने धर्म को अत्यंत सारभूत तत्व में बदल दिया है।औऱ वह है ध्यान। अगर तुम ध्यान में डूब रहे हो और चेतना के ऊंचे ऊंचे शिखर छू रहे हो, तो विचार तिरोहित होने लगते हैं।तुम अनुभव करने लगते हो कि तुम्हारा शरीर तुमसे अलग रह गया है, तुम्हारा मन तुमसे अलग हो गया है, और तुम खड़े हो मध्य में, तूफ़ान के केंद्र में, नितांत मौन, अपने पूरे निखार में , दीप्तिमान, पूर्णत्या संतुष्ट। ध्यान की प्रक्रिया को छोड़कर और सभी कुछ अनावश्यक है।
मैं नही चाहता कि जो मुझसे जुड़े हैं वे अनावश्यक बातों में भटक जाएं।
शुरुआत में वह सब जरूरी था,अब इतने सालों से तुम मुझे सुन रहे हो, तुम मुझे समझ रहे हो। अब तुम इस स्थिति में आ गए हो कि सभी बंधनो से मुक्त हो सको। और तुम पहली बार सही रूप में तभी सन्याशी हो सकते हो यदि अपने भीतर प्रवेश कर सको।
( ओशो दि लास्ट टेस्टामेंट, भाग – 6 प्रवचन 12 )