मैं चाहूंगा कि तुम इतने सक्षम बन जाओ कि

मैं चाहूंगा कि तुम इतने सक्षम बन जाओ कि तुम बाजार में रहो और फिर भी ध्यानपूर्ण बने रहो। मैं चाहूंगा कि तुम लोगों के साथ संबंध बनाओ, प्रेम करो, लाखों तरह के रिश्तों में बंधो– क्योंकि वे रिश्ते तुम्हें समृद्ध बनाते हैं–और फिर भी इतने सक्षम रहो कि कभी-कभी अपने दरवाजे बंद करके सब रिश्तों से अवकाश ले सको… ताकि तुम अपनी अंतरात्मा से भी संबंध बना सको।

‘दूसरों से संबंध रखो, लेकिन अपने आप से भी संबंध रखो। दूसरों से प्रेम करो, लेकिन अपने आप से भी प्रेम करो। बाहर जाओ!– दुनिया सुंदर है, जोखिम भरी है; यह एक चुनौती है, यह समृद्ध बनाती है। उस मौके को खोओ मत! जब भी दुनिया तुम्हारे दरवाजे पर दस्तक दे और तुम्हें पुकारे, बाहर जाओ! निर्भय होकर बाहर निकलो– वहां कुछ भी खोने को नहीं है; वहां सब पाने को है। लेकिन तुम स्वयं खो मत जाना। बाहर ही बाहर मत चलते जाओ और खो जाओ। कभी-कभी घर वापस आओ। कभी-कभी दुनिया को भूल जाओ – वही क्षण ध्यान के लिए हैं।’

‘हर दिन, अगर तुम संतुलित होना चाहते हो, तो तुम बाहरी और आंतरिक संतुलन को बनाए रखो। दोनों का वजन बराबर होना चाहिए, ताकि भीतर तुम कभी भी असंतुलित न होने पाओ।’

‘यही अर्थ है जब झेन मास्टर्स कहते हैं: “नदी में उतरो, लेकिन तुम्हारे पैर पानी को न छू पाए।” संसार में रहो, लेकिन संसार के ही मत हो जाओ। संसार में रहो, लेकिन संसार को अपने भीतर मत आने दो। जब तुम घर आओ, तो घर ऐसे आओ जैसे कि सारा संसार तिरोहित हो गया है।’

(ओशो: ए सडन क्लैश ऑफ़ थंडर)

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