जब परमात्मा आता है और तुम्हारा द्वार खटखटाता है। यह वह प्रेम ही है- जो परमात्मा बनकर तुम्हारा द्वार खटखटा रहा है। हो सकता है एक स्त्री के द्वारा एक पुरुष के द्वारा, एक बच्चे के प्रेम के द्वारा एक फूल के द्वारा ,सूर्योदय अथवा सूर्यास्त के द्वारा..
परमात्मा लाखों तरह से द्वार खटखटा सकता है। लेकिन जब कभी भी परमात्मा द्वारा खटखटाता है, तुम भयभीत हो जाते हो। पुरोहित, धर्माचार्य, राजनीतिज्ञ, माता-पिता और इन सभी के द्वारा सृजित अहंकार–यह सभी दांव पर लगे होते हैं। ऐसा अनुभव होने लगता है कि जैसे तुम मर रहे हो।
तुम रुक जाते हो। तुम पीछे हट जाते हो। तुम अपनी आंखें बंद कर लेते हो, तुम अपने कान बंद कर लेते हो, तुम खटखटाने की आवाज सुनते ही नहीं। तुम अपनी मांद में वापस लौटकर गुम हो जाते हो। तुम अपने द्वार बंद कर लेते हो।
प्रेम, मृत्यु जैसा लगता है–और वह है। और वे लोग वास्तव में आध्यात्मिक आनंद पाना चाहते हैं, तो उन्हें उस मृत्यु से होकर गुजरना होगा क्योंकि पुनर्जीवन केवल मृत्यु के द्वारा ही सम्भव है। जीसस ठीक ही कहते हैं कि तुम्हें अपने क्रांस को स्वयं अपने ही कंधों पर ढोना होगा। तुम्हें मरना ही होगा। वह कहते हैं: ‘‘जब तक तुम्हारा पुनर्जन्म नहीं होता, तुम मेरे राज्य को न देख सकोगे, और तुम वह नहीं समझोगे, जो मैं तुम्हें सिखा रहा हूं।’’
और वह कहते हैं: ‘‘प्रेम ही परमात्मा है’’ वह ठीक कहते हैं क्योंकि प्रेम ही प्रवेश द्वार है।
OSHO