प्रेम को फैलाएँ!

अपने कमरे में
अकेले बैठे हुये प्रेम से भर जाएँ।
प्रेम के प्रकाश को फैलाएँ।
पूरे कमरे को अपनी प्रेम-ऊर्जा से भर दें।
एक नई तरंग में डोलता हुआ अनुभव करें,
झूमता हुआ अनुभव करें,
जैसे कि आप प्रेम के सागर में हों।
अपने आसपास प्रेम-ऊर्जा की तरंगें पैदा करें।
और आप तुरंत अनुभव करेंगे कि कुछ घट रहा है,
आपके आभामंडल में कुछ बदल रहा है,
आपके शरीर के आसपास कुछ बदल रहा है,
एक ऊष्मा आपके शरीर के आसपास पैदा हो रही है,
एक गहन आर्गाज्म जैसी ऊष्मा!
आप अधिक जीवंत हो रहे हैं,
नींद जैसी कोई चीज खो रही है,
जागरण जैसा कुछ आ रहा है।

इस सागर में आनंद से झूमें, नाचें,
गाएँ और पूरे कमरे को प्रेम से भर दें।
शुरु में यह बहुत अजीब सा लगेगा।
आप जब पहली बार अपने कमरे को प्रेम-ऊर्जा से,
आपकी अपनी ही ऊर्जा से भरेंगे —
जो वापस लौटकर आपके ऊपर बरसती रहती है,
और आपको इतना आनंद से भर देती है —
तो ऐसा लगने लगता है: 
कहीं मैं स्वयं को सम्मोहित तो नहीं कर रहा हूँ?
कहीं मैं धोखे में तो नहीं हूँ? यह क्या हो रहा है?
क्योंकि आपने हमेशा यही सोचा है
कि प्रेम किसी दूसरे से आता है —
प्रेम के लिये माँ चाहिये,
पिता चाहिये, भाई चाहिये, पति चाहिये,
पत्नी चाहिये, बच्चे चाहिये —
लेकिन कोई दूसरा व्यक्ति चाहिये!

जो प्रेम किसी दूसरे व्यक्ति पर निर्भर है,
वह क्षुद्र प्रेम है।
जो प्रेम आपके भीतर से आता है,
जो प्रेम आप अपने प्राणों से जन्माते हैं,
वही असली ऊर्जा है।
फिर आप उस सागर को
साथ लिए कहीं भी जाएँ,
और आप अनुभव करेंगे कि जो
आपके पास आता है,
अनायास ही एक भिन्न प्रकार की
ऊर्जा से तरंगायित हो उठता है।
लोग आपको और भी खुली आँखों से देखेंगे।
आप उनके पास से गुजरेंगे,
और वे अनुभव करेंगे कि किसी
अज्ञात ऊर्जा का झोंका उनके
पास से गुजर गया है।
वे और भी तरोताजा अनुभव करेंगे।

आप किसी का हाथ अपने हाथ में लेंगे,
और उसका पूरा शरीर स्पंदित होने लगेगा।
आप किसी के निकट जाएँगे,
और वह व्यक्ति बिना किसी कारण के
ही बहुत खुश होने लगेगा।

यह आप स्पष्ट देख सकते हैं।
तब आप बाँटने के लिये तैयार हो रहे हैं।
तब एक प्रेमी खोजें,
तब एक ग्रहणशील पात्र 
खोजें जो लेने को राजी हो!

ओशो

एस धम्मो सनंतनो

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