जीवन की साधारण प्रक्रिया को चलने दो। उसको रोकना मत, नहीं तो खतरा होगा।
यह सोचकर कि अभी कमजोरी है तो बाकी सब काम रोक दें, सिर्फ ध्यान करें, तो फिर तुम पंगु हो जाओगे। फिर आठ-दस महीने के बाद मुश्किल हो जाएगा काम में लौटना। इसलिए काम तो जारी ही रखना। अड़चन भी हो तो भी जारी रखना।
काम तो जारी ही रखना है। संसार से भागना तो है ही नहीं। भागने का मन बहुत बार होगा, क्योंकि भागने में सुविधा मालूम होती है — मिटी सब, छूटी सब झंझट, सब उत्तरदायित्व गया। मैं तुम्हें उत्तरदायित्व से भगाना नहीं चाहता। सारा उत्तरदायित्व स्वीकार करो, सारा काम जारी रखो।
एक सक्रिय ध्यान सुबह, एक निष्क्रिय ध्यान साँझ। धीरे-धीरे सक्रिय को छोड़ते जाना, निष्क्रिय को गहन करते जाना। सब शांत हो जाएगा।
– ओशो
अरी मैं तो नाम के रंग छकी