दिल है कदमों पर किसी के सर झुका हो या न हो
बंदगी तो अपनी फितरत है खुदा हो या न हो
और फिर कौन फिक्र करता है कि परमात्मा है या नहीं। बंदगी अपनी फितरत है। फिर तो स्वभाव है प्रार्थना। बहुत कठिन है यह बात समझनी।
प्रेम स्वभाव होना चाहिए। प्रेमपात्र की बात ही मत पूछो। तुम कहते हो, जब प्रेमपात्र होगा तब हम प्रेम करेंगे। अगर तुम्हारे भीतर प्रेम ही नहीं तो प्रेमपात्र के होने पर भी तुम कैसे प्रेम करोगे? जो तुम्हारे भीतर नहीं है, वह प्रेमपात्र की मौजूदगी पैदा न कर पाएगी। और जो तुम्हारे भीतर है, प्रेमपात्र न भी हो तो भी तुम उसे गवांओगे कहो, खोओगे कहां? इसे ऐसा समझो। जो कहता है परमात्मा हो तो हम प्रार्थना करेंगे वह आस्तिक नहीं नास्तिक है। जो कहता है प्रेम है हम तो प्रेम करेंगे वह आस्तिक है।
वह जहा उसकी नजर पड़ेगी वहां हजार परमात्मा पैदा हो जाएंगे। प्रेम से भरी हुई आंख जहा पड़ेगी वहीं मंदिर निर्मित हो जाएंगे। जहां प्रेम से भरा हुआ हृदय धड़केगा वहीं एक और नया काबा बन जाएगा एक नई काशी पैदा होगी। क्योंकि जहा प्रेम है वहां परमात्मा प्रगट हो जाता है।
प्रेम भरी आंख कण-कण में परमात्मा को देख लेती है। और तुम कहते हो पहले परमात्मा हो तब हम प्रेम करेंगे। तो तुम्हारा प्रेम खुशामद होगी। तुम्हारा प्रेम-प्रेम न होगा सिर का झुकना होगा हृदय का बहना नहीं।
असली सवाल प्रेमपात्र का नहीं है असली सवाल प्रेमपूर्ण हृदय का है…….
ओशो