
जब भी तुम्हें लगे कि कोई चीज तुम्हें प्रभावित कर रही है, तुम पर हावी हो रही है, तुम्हें तुमसे दूर ले जा रही है, तुमसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो रही है — तो गहरी श्वास लो और छोड़ो, और श्वास बाहर छोड़ने से पैदा हुए उस छोटे-से अंतराल में उस चीज की ओर देखो — कोई सुंदर चेहरा, कोई सुंदर शरीर, कोई सुंदर मकान, या कुछ भी!
यदि तुम्हें यह कठिन लगे, अगर श्वास बाहर छोड़ने भर से ही तुम अंतराल पैदा न कर पाओ, तो एक काम और करो — श्वास बाहर छोड़ो, औए एक क्षण को श्वास का भीतर लेना रोक लो ताकि पूरी वायु बाहर निकल जाए। रुक जाओ, भीतर श्वास मत लो; फिर उस चीज की ओर देखो।
जब वायु पूरी बाहर है, या भीतर है, जब तुमने श्वास लेना बंद कर दिया है, तो कुछ भी तुम्हें प्रभावित नहीं कर सकता। उस क्षण में तुम सेतुहीन हो जाते हो, सेतु टूट जाता है।
श्वास ही सेतु है!
ओशो