समय का बोध ही चेतना हैः ओशो

पदार्थ का अस्तित्व है तीन आयाम में, थ्री डायमेंशनलः लंबाई, चैड़ाई, ऊंचाई। किसी भी पदार्थ में तीन दिशाएं हैं यानी पदार्थ का अस्तित्व इन तीन दिशाओं में फैला हुआ है। अगर आदमी में हम पदार्थ को नापने जाएं तो लंबाई मिलेगी, चैड़ाई मिलेगी और ऊंचाई मिलेगी। और अगर प्रयोगशाला में आदमी की काट-पीट करें तो जो भी मिलेगा वह लंबाई, चैड़ाई, ऊंचाई में घटित हो जाएगा। लेकिन आदमी की आत्मा लंबाई, चैड़ाई और ऊंचाई की पकड़ में नहीं आती।
तीन आयाम हैं पदार्थ के, आत्मा का चैथा आयाम है, फोर्थ डायमेंशन है। लंबाई, चैड़ाई ,ऊंचाई ये तो तीन दिशाएं हैं जिनमें सभी वस्तुएं आ जाती हैं। लेकिन आत्मा की एक और दिशा है जो वस्तुओं में नहीं है, जो चेतना की दिशा है, वह है टाइम, वह है समय। समय जो है, अस्तित्व का चैथा आयाम है।
तो वस्तु तो हो सकती है तीन आयम में, लेकिन चेतना कभी भी तीन आयाम में नहीं होती, वह चौथे आयाम में होती है। जैसे अगर हम चेतना को अलग कर लें तो दुनिया में सब कुछ होगा, सिर्फ समय, टाइम नहीं होगा। समझ लें कि इस पहाड़ पर कोई चेतना नहीं हैं तो पत्थर होंगे, पहाड़ होगा, चांद निकलेगा, सूरज निकलेगा, दिन डूबेगा, उगेगा, लेकिन समय जैसी कोई चीज नहीं होगी। क्योंकि समय का बोध ही चेतना है।
चेतना के बिना समय जैसी कोई चीज नहीं है। कांशसनेस जो है, उसके बिना समय नहीं है। और अगर समय न हो तो चेतना भी नहीं हो सकती। इसलिए वस्तु का अस्तित्व तो है लंबाई, चैड़ाई, ऊंचाई में और चेतना का अस्तित्व है काल में, समय की धारा में।
आइंस्टीन ने तो फिर बहुत अदभुत काम किया है इस तरफ और उसने ये चारों आयाम जोड़ कर अस्तित्व की परिभाषा कर दी है। स्पेस और टाइम , काल और क्षेत्र दो अलग चीजें समझी जाती रही हैं सदा से। समय अलग है, क्षेत्र अलग है। आइंस्टीन ने कहा, ये अलग चीजें नहीं हैं, ये दोनों इकट्ठी हैं और एक ही चीज के हिस्से हैं।
तो उसने एक नया शब्द बनायाः स्पेसियोटाइम। टाइम और स्पेस को दोनों को; काल और क्षेत्र को, दोनों को जोड़ दिया। ये अलग चीजें नहीं हैं। क्योंकि किसी भी चीज के अस्तित्व में, तीन चीजें तो हमें ऊपर से दिखाई पड़ती है; तो उसे हम लंबाई, चैड़ाई, ऊंचाई में नाप-जोख सकते हैं, लेकिन अस्तित्व होगा ही नहीं। हम बता सकते हें कि कौन सी चीज कहां है, किस तरह है, लेकिन अगर हम यह बता सकें कि कब है, अगर हम समय भी न बता सकें तो उस वस्तु का हमें कोई पता नहीं चलेगा। तो आइंस्टीन ने तो अस्तित्व की अनिवार्यता मान लिया समय को, वह अनिवार्यता है अस्तित्व की।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *