ओशो ने अपने जीवन काल में कहा था। मैं तुम्हारे लिए जिंदा हूं, तुम मेरे लिए जिंदा हो। इन दोनों जिंदगियों के बीच में कुछ घटेगा। जब मैं कल जा चुका होऊंगा, तुम्हारे बच्चों और मेरे बीच कैसे कुछ घटेगा? हां, इतना जरूर तुम अपने बच्चों को बता जाना कि इस तरह की घटना घटती है, खोजना; हमें मिल गया था, तुम्हें भी मिल जायेगा।
कोई न कोई मिल जाएगा-कोई जाग्रत पुरुष; तुम उसके चरणों में झुकना। मगर तुम मेरी तस्वीर या मेरी मूर्ति अपने बच्चों के लिए मत छोड़ना मैं एक मुर्दा मूर्ति रहूंगा। वे मेरी पूजा कर देंगे, पानी डालकर स्नान करवा देंगे, दातून रख देंगे, मगर मूर्ति के लिए इनका कोई अर्थ नहीं होगा। यह सब व्यर्थ होगा।
और चूंकि वे इस मूर्ति में उलझे रहेंगे, इसलिये कोई जिंदा गुरु उनके द्वार से भी गुजरेगा तो वे देखेंगे नहीं। वे कहेंगे: हमें जरूरत ही नहीं, हमारे गुरु तो हैं, हम तो उनकी पूजा करते हैं, हम तो उनको मानते हैं। इसी क्रम में ओशो ने अपने जीवन की एक रोचक घटना बताई…