मनुष्य का कामुक होना एक चाल है प्रकृति की Osho

ओशो कहते हैं कि यौन इच्छा का उपयोग प्रकृति अपने आप को बनाए रखने के लिए करती है, इससे ज्यादा कुछ नहीं।
मानव चेतना की चाल अंधेरे से प्रकाश की ओर और अचेतावस्था से चेतावस्था की ओर है, जो एक महान क्रांति है। वो व्यक्ति जो अपनी अज्ञानता में जीवन जीता है, उसके प्रति प्यार महसूस करना प्यार नहीं कहलाता है। वह केवल सेक्स है जो प्रकृति की एक रणनीति है ताकि उसकी दुबारा उत्पत्ति हो सके। उस उद्देश्य को पूरा करने के लिए आपको केवल इस्तेमाल किया जा रहा है, जो इस प्रक्रिया का सबसे कुरूप हिस्सा है। आप इसके मालिक नहीं है बल्कि आप जीवविज्ञान के हाथों की कठपुतलियां हैं। और जो भी आप कर रहे हैं, वो आप नहीं कर रहे हैं बल्कि प्रकृति आपको ऐसा सहज रूप से करने के लिए मजबूर कर रही है। यहां कोई विकल्प नहीं है और ना ही चयन करने की सुविधा। आप चयन नहीं कर सकते हैं जबतक यह प्रकृति से संबंधित है। प्रकृति की पकड़ आप पर निरपेक्ष है और आप सामान्य रूप से एक कैदी हैं। लेकिन आप खुद को बेवकूफ बना सकते हैं। आप सोचते हैं कि यह कुछ ऐसा है जिसे आप कर रहे हैं लेकिन हकीकत यह है कि ऐसा आपके द्वारा करवाया जा रहा है।
भारत में एक कहानी प्रचलित है। जगन्नाथ पुरी हिंदुओं का एक पवित्र स्थल है। जगन्नाथ का अर्थ होता है संपूर्ण जगत के भगवान का मंदिर। इस मंदिर के कारण इसके आस-पास शहर बस गया और इसी मंदिर के कारण वह शहर जगन्नाथ पुरी कहलाया। हर साल वहां एक बड़ा त्योहार होता है जिसमें लाखों लोग जुटते हैं। मंदिर की मूर्ति को एक रथ पर ले जाया जाता है ताकि वहां जमा हुए लाखों लोग इसे देख सकें। रथ को बारह खुबसूरत घोड़ों द्वारा खींचा जाता है जो सफेद रंग के होते हैं। यह सफेद रंग जगत के ईश्वर का रंग होता है। रथ सुनहरे रंग का होता है और काफी मूल्यवान भी। कथा के अनुसार एक बार ऐसा हुआ कि एक कुत्ता रथ के आगे आकर घोड़ों के सामने टहलने लगा। लोग जमीन पर लेटे हुए थे और प्रभु को सम्मान देने के लिए साष्टांग प्रणाम कर रहे थे। कुत्ते ने सोचा, “यह भी खुब रही! मेरे इतने सारे अनुयायी हैं। यह बात मुझे पहले पता नहीं थी। शिष्यों की इतनी भीड़… मैं अवश्य ही एक महान गुरु रहा होउंगा।” उसे इस बात की जानकारी नहीं थी कि उसके पीछे इस जगत के ईश्वर का रथ है। वैसे भी जब लाखों लोगों के द्वारा इस तरह सम्मान दिया जाय तो किसी के लिए यह सोचना मुश्किल है कि यह सम्मान उसे नहीं बल्कि उसके पीछे जो खड़ा है उसे दिया जा रहा है। यह उसके अहंकार के खिलाफ है। यही परिस्थिति मनुष्यों की भी है, जैसा कि यह जीवविज्ञान से संबंधित है। जीवविज्ञान का रथ आपके पीछे है जो ईश्वर की प्रकृति को ढ़ो रहा है और आप सोचते हैं कि ये सबकुछ आप कर रहे हैं। बस जरा सी सावधानी की आवश्यकता है और आप यह देखने में समर्थ हो सकेंगे कि आपका इससे कोई लेना-देना नहीं है। प्रकृति खुद को पूरा करना चाहती है और वो अपने मतलब के लिए आपका इस्तेमाल कर रही है।
सेक्स के खिलाफ धर्म का विरोध 99 प्रतिशत बेवकूफी है लेकिन एक प्रतिशत सच्चाई भी है जिससे आप इंकार नहीं कर सकते हैं। लेकिन मैंने कभी भी उस एक प्रतिशत सच के बारे में बात नहीं की क्योंकि वो एक प्रतिशत आपको धोखा दे सकता है और आप उस 99 प्रतिशत को भूल जायेंगे जो सच नहीं है। लेकिन मेरी तस्वीर को पूरा करने के लिए ये अंतिम बिंदु आवश्यक है जिसे मैं बाहर नहीं छोड़ सकता। वो एक प्रतिशत सच महत्वपूर्ण है। वास्तव में उस एक प्रतिशत सच के कारण ही सभी धर्म सेक्स विरोधि हो गये हैं। और सच यह है कि सेक्स लोगों को बेवकूफ बनाता है। उन्हें यह विचार देता है कि वह इसके गुरु हैं जबकि वह एक दास है। और हर दासता को खत्म होना होता है। उसे इस खाई से बाहर आना है। लेकिन अगर वह सोचता है कि खाई उसके लिए सही स्थान है तो आप उसे खींचकर बाहर नहीं ला सकते हैं। यहां तक कि आप उसे राजी भी नहीं कर सकते हैं कि वह इससे बाहर आ जाए। इसलिए सभी धर्मों में सेक्स की निंदा की जाती है।

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