बुद्घ को वृक्ष के नीचे ज्ञान कैसे मिला Osho

ज्ञान का कोई भी संबंध किसी बाह्य वस्तु से नहीं है। हो भी नहीं सकता। ज्ञान है आंतरिक घटना। आपमें घटती है और आपके कारण ही घटती है। रुकती है तो भी आपके ही कारण। नहीं घट पाई आज तक, तो भी आपके ही कारण। आपके अतिरिक्त और कोई जिम्मेवार नहीं है अज्ञान के लिए।
इसलिए ज्ञान के लिए भी आपके अतिरिक्त और कोई भी कारण नहीं बन सकता। ध्यान रखें, जिस कारण घटना रुकती है, उसी कारण सहायता मिल सकती है। कोई वृक्ष आपके अज्ञान का कारण नहीं है। बोधि-वृक्ष बुद्ध के ज्ञान में बाधा नहीं था, तो सहयोगी भी नहीं हो सकता। वृक्ष का कोई जिम्मा नहीं है। बुद्ध का वृक्ष से संबंध भी क्या? बृद्धत्व नहीं घटा, तो खुद बुद्ध ही कारण थे। बुद्धत्व घटा, तो भी बुद्ध ही कारण थे।
इसे तो पहले आधारभूत सिद्धांत की भांति समझ लें। क्योंकि हमारे मन की आम-वृत्ति है, उत्तरदायित्व को किसी पर छोड़ना। बुरा हो तो हम सोचते हैं, कोई और;शायद तारे या ग्रह-नक्षत्र, परिस्थिति, लोग, भला हो, तो भी हम सोचते हैं, कहीं और हमसे उसका स्रोत है। परमात्मा की जब मर्जी होगी तब होगा।
जबकि आपके अतिरिक्त और किसी की मर्जी न तो साथी है, न विरोधी है। आपकी मर्जी के अतिरिक्त और कोई भाग्य नहीं है। फिर भी, बुद्ध वृक्ष के नीचे थे जब ज्ञान घटा, सुकरात भी एक वृक्ष से टिका हुआ खड़ा था, महावीर भी एक वृक्ष के पास थे। तो क्या कारण होगा? ये सारी घटनांए महज संयोग नहीं हो सकती।
कारण केवल इतना है व्यक्ति के ऊपर पहली पर्त है संस्कृति की, समाज की, संस्कार की, दूसरी पर्त है प्रकृति की। और तीसरा, जो आधारभूत स्वभाव है, वह है परमात्मा का। तो इसे हम ऐसा समझें, संस्कृति ऊपरी पर्त है, प्रकृति उसके बाद की गहरी पर्त है। और स्वभाव, स्वरूप, आधार है। या ऐसा समझें कि स्वरूप है केंद्र, स्वभाव है केंद्र, प्रकृति है उसकी परिधि और उस प्रकृति के ऊपर भी संस्कारों का जाल है।
वृक्ष केवल प्रकृति का प्रतीक है। ये सारे लोग संस्कृति और समाज को छोड़कर वन में चले गए। इसे प्रतीक के अर्थ में समझें। ये सारे लोग संस्कार को छोड़ दिए और प्रकृति में चले गए। घटना प्रकृति में घटी। संस्कृति में नहीं घट पाई। घटना वहां घटी जहां मनुष्य का किया हुआ कुछ भी न था।
जहां मनुष्य का कोई चिन्ह न था, हस्ताक्षर न थे। जहां मनुष्य के नियम, विधियां, मनुष्य का बनाया हुआ कृत्रिम जाल नही था, वहां घटना घटी। पर यह घटना का कारण नहीं है। ये लोग संस्कृति से हटे और प्रकृति में चले गए।

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