कबीर, अद्भुत संत जिनके आगे सब फीकेः ओशो
(कबीर निस्चय ही मुझे अति प्रिय है, कारण बहुत है )
“मसि कागद छूयौ नहीं, कलम नहीं गही हाथ” -कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है। कबीर कहते है “में कहता आखन की देखीं” :-
क्युकि कबीर अनपढ़ थे, अनगढ़ थे न ही संस्कृत उन्हें आती थी लेकिन उनके एक एक शब्द सुनने की समझने की कोशिश करो, क्युकि कबीर जैसे मुस्किल से कभी होते है| उनकी दीवानगी ऐसी है, की तुम अपना अहोभाग्य समझना अगर उनकी सुराही से एक बून्द भी तुम्हारे कंठ में उतर जाय, अगर उनका पागलपन जरा भी तुम्हे छू ले तुम स्वस्थ हो जाओगे, उनका पागलपन थोड़ा सा तुम्हे छू ले तुम कबीर जैसे नाच उठोगे और जाग उठोगे, तो उससे बड़ा धन्यभाग नही वही परम सौभाग्य है और सौभाग्यशालियो को ही मिलता है
कबीर के वचन को, एक एक शब्द को समझने की कोशिस करो, कबीर कहते है “पीवत राम रास लगी खुमारी”: एक एक शब्द में डुब्की लगाओ, शब्द को जानना नही है पीना है|
सत्य तो एक प्यास है कोई जिज्ञासा नहीं है ,जो पीने से ही भुझेगी कंठ से उतारना है प्राणो में भरो अंदर तक पहुचाना होगा क्युकी प्यास तो पीने से बुझेगी और भूख तो खाने से से ख़त्म होगी कबीर के शब्द को पीना है| क्युकी जानने से प्यास नहीं बुझेगी अगर कोई प्यासे को लाख जल की चर्चा करते रहो सारा विज्ञानं समझा दो, H20 का पूरा फार्मूला बता दो सारा परमाणु का विज्ञानं बता दो तो भी प्यासे कहेगा बकवास बंद करो मुझे प्यास लगी है मुझे पानी दो मुझे पीना है|
कबीर का रास्ता बड़ा सीधा और साफ है। बहुत कम लोगों का रास्ता इतना सीधा-साफ होता है। टेढ़ी-मेढ़ी बातें कबीर को पसंद नहीं। इसलिए उनके रास्ते का नाम है: सहज योग। इतना सरल है कि भोलाभाला बच्चा भी चल जाए। पंडित न चल पाएगा। तथाकथित ज्ञान न चल पाएगा। निर्दोष चित्त होगा, कोरा कागज होगा तो चल पाएगा।
कबीर के संबंध में पहली बात समझ लेनी जरूरी है। यहां पांडित्य का कोई अर्थ नहीं है। कबीर खुद भी पंडित नहीं हैं। कहा है कबीर ने: ‘मसि कागद छूयौ नहीं, कलम नहीं गही हाथ’-कागज-कलम से उनकी कोई पहचान नहीं है।
‘लिखालिखी की है नहीं, देखादेखी बात’-कहा है कबीर ने। देखा है, वही कहा है। जो चखा है, वही कहा है। उधार नहीं है। कबीर के वचन अनूठे हैं; जूठे जरा भी नहीं। और कबीर जैसा जगमगाता तारा मुश्किल से मिलता है।
संतों में कबीर के मुकाबले कोई और नहीं। सभी संत प्यारे और सुंदर हैं। सभी संत अदभुत हैं; मगर कबीर अदभुतों में भी अदभुत हैं, बेजोड़ हैं। कबीर की सब से बड़ी अद्वितीयता तो यही है कि जरा भी उधार नहीं है।
अपने ही स्वानुभव से कहा है। इसलिए रास्ता सीधा-साफ है; सुथरा है। और चूंकि कबीर पंडित नहीं हैं, इसलिए सिद्धांतों में उलझने का कोई उपाय भी नहीं था। बड़े-बड़े शब्दों का उपयोग कबीर नहीं करते। छोटे-छोटे शब्द हैं जो सभी की समझ में आ सकें।
लेकिन उन छोटे-छोटे शब्दों से ऐसा मंदिर चुना है कबीर ने, कि ताजमहल फीका है। जो एक बार कबीर के प्रेम में पड़ गया, फिर उसे कोई संत न जंचेगा। और अगर जंचेगा भी तो इसलिए कि कबीर की ही भनक सुनाई पड़ेगी। कबीर को जिसने पहचाना, फिर वह शक्ल भूलेगी नहीं। हजारों संत हुए हैं, लेकिन वे सब ऐसे लगते हैं, जैसे कबीर के प्रतिबिंब। कबीर ऐसे लगते हैं, जैसे मूल।
कबीर के कहने का अंदाजे बयां, कहने का ढंग, कहने की मस्ती बड़ी बेजोड़ है। ऐसा अभय और ऐसा साहस और ऐसा बगावती स्वर, किसी और का नहीं है।
कबीर निस्चय ही मुझे अति प्रिय है कारण बहुत है बुध से लगाव है लेकिन बुध राजमहल के एक उपवन है बड़ी सजावट है तो कबीर जंगल है जहा न शिक्षा है न संस्कार है और कुवारा है फिर भी परमपर्काश का अनुभव है शिक्षित व्यक्ति को जब ज्ञान होता है उसकी अभिव्यक्ति अनगढ़ नही हो सकती कबीर की अभ्व्यक्ति अनगढ़ है ऐसा हीरा जो अभी अभी खान से निकला न जौहरी ने देखा न छैनी पड़ी इसलिए दूर हिमालय पहाड़ो पर जंगलो में जो मौन है जो प्रगाढ़ शांति है वो कबीर में है कबीर के साथ ही भारत में बुध की एक नयी श्रंखला शुरू हुई नानक ,रविदास, फरीद ,मीरा,सहजो ,दादु ये अलग ही है| बुध कृष्ण महाबीर अलग है ये राजमहल से निकले है कबीर नानक फरीद छोपड़ो में बजी वीणा है राजमहल में गीत पैदा होना स्वाभाविक आश्चर्य नही लेकिन निर्धन को तो धन की भी आशा होती है बुध के पास सब था कबीर के पास क्या था बुध के पास क्या नही था फिर पाने को और क्या जिसे सब मिला है राजमहलों में रहकर भी जो सन्यस्थ न हो तो महा मूड होगा और अपने मूड होने का सबूत देगा पर कबीर तो जुलाहे थे आज कमाया तो आज खाया कल कमाएंगे तो कल खाएंगे और ऐसे में भी परमपर्काश का अनुभव होना अद्भुत है