ओशो ने अपने जीवन में बहुत सारी बातें कहीं, बहुत सारे विचार दिए. लेकिन उनमें से कुछ बातें इतनी गैर पारंपरिक थी कि उन्हें जमाने ने न केवल गलत माना बल्कि यह भी कहा गया कि वो जानबूझकर ऐसी बातें करते हैं, जिससे विवाद फैले और उन्हें पब्लिसिटी मिले. ये बातें आज भी ऐसी हैं जो एकबारगी हर किसी को झकझोर या परेशान कर सकती हैं.
ओशो के बारे में उनके अनुयायियों का मानना है कि उन्होंने दुनिया को जो विचार दिए, वो समय से बहुत आगे के और क्रांतिकारी थे. हालांकि इससे कुछ लोग सहमत होंगे और कुछ नहीं. ऐसी ही बातें जिसे जमाना विवादित मानता है तो कुछ का मानना है कि ये सिरे से गलत तर्क हैं.
सेक्स से ही होकर समाधि तक पहुंच सकते हैं
जो सेक्स का दुश्मन है, वह कभी ब्रह्मचर्य हासिल नहीं कर सकता. संभोग से होकर ही समाधि का रास्ता जाता है. दरअसल ब्रह्मचर्य सेक्स का विरोध नहीं, सेक्स का रूपांतरण है.
गांधी हिंसक हैं
महात्मा गांधी की विचारधारा इंसान को पीछे ले जाने वाली है. यह खुद को नुकसान पहुंचाने वाली विचारधारा है. मेरी दृष्टि में कृष्ण अहिंसक हैं और गांधी हिंसक. दो तरह के लोग होते हैं, एक वह जो दूसरों के साथ हिंसा करें और दूसरे वह जो खुद के साथ हिंसा करें। गांधी दूसरी किस्म के व्यक्ति थे.
जिसे संन्यास कहत हैं वो पलायन है
घर परिवार छोड़कर चल पड़ना संन्यास नहीं है. वह पलायन है. यह लिया हुआ संन्यास ही संसार के विरोध की भ्रांति पैदा कर देता है. संन्यास भी क्या लिया जा सकता है? संन्यास लिया नहीं जाता बल्कि उसका जन्म होता है.
पूंजीवाद शोषण नहीं करता
पूंजीवाद शोषण की व्यवस्था नहीं है. पूंजीवाद एक व्यवस्था है जिससे श्रम को पूंजी में बदला जा सके. अगर हमारे पास कुछ था ही नहीं तो शोषण कैसे हो सकता है? शोषण उसका हो सकता है जिसके पास हो। अमीर के न होने पर हिन्दुस्तान में गरीब नहीं था? हां, गरीबी का पता नहीं चलता था। हम जिसे पूंजीवाद कहते हैं, वह दरअसल जन-पूंजीवाद है।
परिवार प्रेम पर खड़ा नहीं होता
परिवार, विवाह के केंद्र पर खड़ा है, प्रेम के केंद्र पर नहीं. यह झूठ है कि विवाह से दो व्यक्ति प्रेम की दुनिया में उतर जाते हैं। दो आदमियों के हाथ बांध देने से प्रेम पैदा नहीं होता. जो लोग बंधा हुआ अनुभव करते हैं, वे आपस में प्रेम कभी नहीं कर सकते।
शादी को खत्म कर दो
शादी को खत्म कर देना चाहिए, शादी खत्म होगी तो तलाक भी खत्म हो जाएंगे. आप इंसान हैं कोई चीज़ नहीं कि किसी का आप पर हक़ हो.
धर्म ही है भेदभाव की वजह
धर्म की पहचान को ही मनुष्य ने अपनी पहचान मान लिया है. धर्म पहले है और मनुष्यता बाद में. धर्म के नाम पर भेदभाव बढ़े हैं. आनंद मनुष्य का स्वभाव है और आनंद का कोई धर्म नहीं होता.
समाजवाद बेकार की चीज है
समाजवाद हो या साम्यवाद उसका मकसद व्यक्ति की हैसियत को नष्ट कर देना है. व्यक्तिगत अधिकार छीनकर सब कुछ राज्य के हाथ में सौंप देना. हमारे जैसे मुल्क में, जहां राज्य निकम्मा साबित हो रहा है, वहां सोशलिज़्म या कम्यूनिज़्म देश को गहरी गरीबी में ले जाएगा.