जरथ्रुष्ट एक पहाड़ से नीचे उतर रहा था। भागता हुआ और हांफता हुआ वह बाजार में पहुंचा। बाजार की भीड़ में चिल्ला कर उसने पूछा कि ‘तुम्हें कुछ पता चला? हैव यू गाट दि न्यूज?” लोग पूछने लगे, ‘कौन-सी खबर?” तो जरथ्रुष्ट हैरान हो गया-‘इतनी बड़ी घटना घट गई है और तुम्हें पता नहीं! तुम्हें खबर नहीं मिली कि ईश्वर मर गया है!” लोग बहुत हैरान हुए। फिर जरथ्रुष्ट को लगा कि शायद वह जल्दी आ गया है, लोगों तक अभी खबर नहीं पहुंची है।
मैं भी आपसे पूछना चाहता हूं -‘क्या आपको पता है? खबर मिली कि भारत मर गया है?” शायद आप भी चौकेंगे और कहेंगे यह कैसी खबर? आपको भी पता नहीं चला होगा कि भारत मर गया है। इकबाल ने गीत गाया है कि ‘कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।
कहीं ऐसा तो नहीं है कि भारत की हस्ती बहुत पहले मिट चुकी है, अब मिटने को भी हमारे पास कुछ नहीं बचा है! यह देश हजारों साल से एक मरा हुआ देश है और इस देश को नया जीवन, नई आत्मा खोजनी है। निश्चित ही शिक्षक इस खोज में सहयोगी बन सकता था, लेकिन आज तक बना नहीं है, वह भी जान लेना जरूरी है।
अब तक तो शिक्षक मशालची सिद्ध नहीं हुआ है नई जिंदगी का। अब तक तो वह पुराने मुर्दा समाज का ही एजेंट रहा है। शिक्षक नए जगत, नए जीवन, नई मनुष्यता के जन्म का माध्यम बन सकता है, लेकिन बना नहीं है। अब तक नहीं बना है। शिक्षक की इस सचाई को पहले समझ लेना जरूरी है।
शिक्षक का आज तक का काम क्या रहा है? समाज ने शिक्षक से आज तक कौन सा काम लिया है? कहता समाज यही है कि शिक्षक से हम बच्चों को शिक्षा और ज्ञान देने का काम लेते हैं। लेकिन बहुत गहरे में समाज पुरानी सारी बीमारियों, सारे अज्ञान, सारे अंधविश्वास को भी शिक्षक के माध्यम से नई पीढ़ी के भीतर डाल देने का काम लेता है।
समाज बरदाश्त नहीं करता कि शिक्षक क्रांतिकारी हो। समाज चाहता है कि शिक्षक कभी भी क्रांतिकारी न हो। क्योंकि जिस दिन शिक्षक क्रांतिकारी होगा, उसी दिन समाज रूपांतरित हो जाएगा, नया समाज पैदा हो जाएगा। शिक्षक का क्रांतिकारी होना, पूरे समाज के बदल जाने का बुनियादी कारण बन सकता है।
यह जान कर आपको हैरानी होगी कि दुनिया में शिक्षक के जगत से न कभी कोई क्रांतिकारी विचार पैदा हुआ है, न कोई नया दृष्टिकोण, न कोई नई दृष्टि पैदा हुई है।
शिक्षक विद्रोही नहीं है। और मेरी दृष्टि में जो शिक्षक विद्रोही नहीं है, वह शिक्षक ही नहीं है, उसने शिक्षक होने का अधिकार ही खो दिया है। क्योंकि कोई शिक्षक, शिक्षक कैसे हो सकता है, जो विद्रोही न हो! विद्रोही हुए बिना ज्ञान की दिशा में आंखें ही नहीं खुलती हैं।
विद्रोही हुए बिना मनुष्य की आत्मा अपनी खोल को तोड़ कर कभी बाहर ही नहीं आती है। विद्रोही हुए बिना कोई जीवन के साथ कभी पैर मिला कर चलने में समर्थ ही नहीं होता है।
और जो ज्ञान, जो शिक्षा व्यक्ति की स्वतंत्र आत्मा को जन्म न दे सकती हो उसे शिक्षा कहें, उसे ज्ञान कहें? वह बोझ होगी, जानकारी होगी, इनफर्मेशन होगी, लर्निंग होगी, लेकिन शिक्षा नहीं है। शिक्षा को आविष्कार बनना चाहिए आत्मा का, लेकिन वह नहीं होता।
नीत्शे अपनी टेबल पर एक तख्ती रखे हुए था। उस तख्ती पर दो शब्द लिखे हुए थे। और जब भी कोई उससे पूछता कि तुम्हारी जिंदगी का सारभूत, तुम्हारी जिंदगी का सार आ जाए, ऐसी कोई बात क्या है? तो वह तख्ती को बता देता। उस तख्ती पर लिखा हुआ था–लिव डेंजरसली, खतरे में जीओ।
सच बात तो यह है कि खतरे में जीने पर ही जीवन का पता चलता है। सुरक्षा में जीने पर जीवन का पता ही नहीं चलता। इसलिए कब्र में जो रहते हैं, वे बहुत सुरक्षित जीते हैं। वहां कोई खतरा नहीं है।
एक बगीचे में एक दिन सुबह बड़ी अजीब घटना घट गई। पत्थरों की दीवार में दबे हुए घास के कुछ छोटे-छोटे फूल थे। वे दीवाल के पत्थरों की आड़ में ही दब कर जीते थे। न उन्हें तूफानों का पता चलता था, क्योंकि दीवाल सदा ओट बन जाती थी।
वे सुरक्षित थे, कोई खतरा नहीं था उन्हें। उन घास के फूलों में से एक फूल का दिमाग खराब हो गया और उसने एक दिन झांक कर बाहर देखा कि एक गुलाब का फूल दीवार के ऊपर आकाश की तरफ उठा हुआ है।
उसके मन में भी एक कामना और एक सपना समाया कि मैं भी बन सकता हूं गुलाब।उसने रात भगवान से बहुत प्रार्थना की कि मुझे गुलाब बना दो। भगवान ने उसे बहुत समझाया कि पागल, तू बहुत सुरक्षित है। गुलाब सुबह खिलता है, सांझ गिर जाता है। तेरा फूल खिलता है तो महीनों खिला रहता है। लेकिन उस घास के फूल ने कहा ‘वह मैं समझा। मेरा फूल महीनों इसीलिए खिला रहता है कि सच में मेरा फूल खिलता ही नहीं। घास का फूल पहले से ही सूखा होता है, इसलिए कुम्हलाता भी नहीं। नहीं, मुझे तो खिलना है गुलाब की तरह।” नहीं माना घास का फूल।
तोे गुलाब का फूल हो गया। सूरज निकला, आकाश में बादल घिरे, जोर की हवाएं चलने लगीं; वे जो घास के फूल नीचे थे, वे झांक-झांक कर चिल्लाने लगे कि देखा पागल, अब मरोगे। क्षण भर के सुख के लिए शाश्वत सुख खो दिया।
क्षण भर के लिए, गुलाब होने के लिए, वह सुरक्षा खो दी, जो सदा के लिए अपनी थी। बादल गरजने लगे, पानी गिरने लगा, तूफानी हवाएं बहने लगीं। उसकी पंखुड़ियां गिरने लगीं, उसके पत्ते गिरने लगे, फिर वह पूरा पौधा गिर पड़ा। उसकी जड़ें उखड़ गईं।
जब वह दम तोड़ रहा था, तो उसके पास उन घास के फूलों ने झुक कर पूछा: ‘मित्र, अब बुद्धि आई कि नहीं?” उस मरते गुलाब ने कहा: ‘दोस्तो”, उस क्षण में जो जान लिया, वह हजारों वर्ष भी पत्थर की ओट में छिपे हुए नहीं जाना।
आकाश में उठना एक क्षण को, तूफानों से जूझ जाना! एक क्षण को सही, आकाश के खुले सूरज के सामने खड़ा होना! कमजोर शाखाएं सही, लेकिन तूफानों से जूझ जाना! थोड़ी ही देर को खिलना, लेकिन खिलना! जो मजा जाना, जो जिंदगी जानी, जो रस जाना! परमात्मा को धन्यवाद।
तुम अपनी सुरक्षा की ओट में ही जियो और मर जाओ। तुम्हारा जीना, जीना भी नहीं है, क्योंकि तुम्हें पता ही नहीं कि तूफान में जीने का क्या अर्थ होता है?
भारत का शिक्षक अगर यह तय करे कि हम लीक पर बंधे रास्तों से मुक्त करेंगे नई पीढ़ी को, तो भारत की आत्मा का जन्म हो सकता है, अन्यथा नहीं हो सकता है। और हम खतरे में दीक्षित करेंगे, सुरक्षा में नहीं। हम आने वाली पीढ़ी के बच्चों को कहेंगे कि तुम जाओ खतरे में। लांघो समुद्रों को, चढ़ो पहाड़ों पर, यात्रा करो आकाश की। तभी नए समाज का सृजन किया जा सकेगा।