जीवन में सबसे अधिक सीखने योग्य यदि कुछ है, तो संगीत का बोध है, संगीत का भाव है। संगीत का अर्थ है कि जीवन का अंतिम रहस्य स्वरों की भीड़-भाड़ नहीं है, न ही एक अराजकता है, न ही एक अव्यवस्था है; वरन सभी स्वर मिलकर एक ही तरंग, एक ही लय, एक ही इंगित, एक ही इशारा कर रहे हैं।
जीवन के परम-केद्र पर सभी संयुक्त है, सुव्यवस्थित है। और जो अव्यवस्था दिखाई पड़ती है, वह हमारे अंधेपन के कारण है। जो स्वरों का उपद्रव दिखाई पड़ता है, जो तनाव दिखाई पड़ता है, वह भी हमारे बहरे होने के कारण है। क्योंकि हम ठीक से सुन नहीं पाते, इसलिए हम स्वरों के बीच में बहती हुई जो समस्वरता है, उसका अनुभव नहीं कर पाते हैं।
हमें स्वर तो सुनाई पड़ जाते हैं, लेकिन एक स्वर को दूसरे स्वर से जोड़ने वाला जो बीच का सेतु है- संगीत- वह हमें सुनाई नहीं पड़ता है। जैसे-जैसे सुनने की सामर्थ्य बढ़ेगा वैसे-वैसे स्वर खोते जाएंगे और संगीत उभरने लगेगा। एक ऐसा क्षण भी आता है, जब स्वर खो जाते हैं, शून्य हो जाते हैं; सब लहरें खो जाती हैं और केवल संगीत का सागर रह जाता है, केवल संगीत की प्रतीत रह जाती है।
संगीत का अर्थ है, स्वरों के बीच जो प्रेम का संबंध है, एक स्वर दूसरे स्वर से जिस मार्ग से जुड़ा है, एक स्वर दूसरे स्वर में जिस भांति खो जाता है और लीन हो जाता है। यह जो दो स्वरों के बीच में अंतराल है, वह अंतराल खाली नहीं है। वह अंतराल भी भरा हुआ है। उस अंतराल को अनुभव करने का नाम जीवन के संगीत को अनुभव करना है।
सुना होगा कि सत्य शब्दों में नहीं कहा जा सकता। लेकिन शब्दों के बीच में जो खाली जगह होती है, वहां प्रकट होता है। और सुना होगा कि रिक्तता तोड़ती नहीं, जोड़ती है। और यह भी सुना होगा कि शून्यता भी मात्र शून्यता नहीं है, शून्यता भी एक अपूर्व संगीत से भरी है।
लेकिन शून्यता को सुनने की, सन्नाटे को सुनने का सामार्थ्य हमारे पास नहीं है। जीवन का संगीत अंतरालों में है। अंतराल हमें दिखाई नहीं पड़ते। बीच में खाई-खड्डे मालूम पड़ते हैं। एक स्वर सुनाई पड़ता है, फिर दूसरा स्वर सुनाई पड़ता है, लेकिन बीच में कोई सेतु नहीं दिखाई पड़ता।
इससे अराजकता अनुभव होती है। हम यहां इतने लोग बैठे हैं। एक व्यक्ति दिखाई पड़ता है, फिर दूसरा व्यक्ति दिखाई पड़ता है, दोनों के बीच में जो जोड़ है, वह दिखाई नहीं पड़ता। इसलिए सभी व्यक्ति अलग-अलग मालूम पड़ते हैं। अगर बीच का जोड़ दिखाई पड़ जाए, तो व्यक्ति यहां खो जाएं, जीवन की एक सरिता रह जाए।
जैसे मैं देखता हूं कि आप महत्वपूर्ण कम हैं, आपके पड़ोस में बैठा हुआ व्यक्ति भी कम महत्वपूर्ण है, लेकिन दोनों के बीच जो जीवन बह रहा है, वही ज्यादा महत्वपूर्ण है। क्योंकि उसी जीवन के कारण आप भी जीवित हैं और आपका पड़ोसी भी जीवित है। लेकिन वह जीवन अदृश्य है।
आप दिखाई पड़ते हैं एक छोर पर, पड़ोसी दिखाई पड़ता है दूसरे छोर पर, बीच में जो जीवन की तरंग है, वह दिखाई नहीं पड़ती। दृष्य को ही जो देखता है, उसे जीवन में अराजकता दिखाई पड़ेगी। क्योंकि सभी दृष्य अदृश्य से जुड़े हैं। जो दिखाई पड़ता है, वह तो छोर है; जो नहीं दिखाई पड़ता- बीच की जो तरंग, बीच की जो लहर- वही वास्तविक अस्तित्व है। उस अदृष्य को अनुभव करना ही जीवन के संगीत को अनुभव करना है।
संगीत का अर्थ ठीक से ख्याल में ले लेंगे। अंतराल को जो भरे हुए है, रिक्त को भी जो पूर्ण किये हुए है, शून्य में जो पूर्ण की तरह मौजूद है। जो दिखाई नहीं पड़ता, और है। लेकिन अनुभव किया जा सकता है। जैसे-जैसे हम भीतर ज्यादा संवेदनशील होते जाएं, वैसे-वैसे अनुभव होने लगेगा।
और तब व्यक्ति नहीं दिखाई पड़ेंगे, उनको जोड़ने वाला परमात्मा दिखाई पड़ेगा। तब एक वृक्ष नहीं दिखाई पड़ेगा, दूसरा वृक्ष नहीं दिखाई पड़ेगा, बल्कि दोनों वृक्षों में जो जीवन एक सा बह रहा है-भीतर भी और दोनों वृक्षों के बाहर भी-वह दिखाई पड़ना शुरू हो जाएगा।