ए .एच मैशलो ने इस सेल्फ एक्चुअलाइजेशन शब्द का प्रयोग किया है। वे बताते हैं कि मनुष्य एक संभावना की तरह पैदा होता है। वह सच में वास्तविक नहीं है, मात्र संभावना है। मनुष्य एक संभावना की भांति जन्म लेता है, वास्तविकता की भांति नहीं। वह कुछ हो सकता है, वह अपनी संभावना को वास्तविकता बना सकता है। ऐसा नहीं भी हो सकता है। अवसर का उपयोग किया जा सकता है, नहीं भी किया जा सकता है।
और प्रकृति तुम्हें वास्तविक होने के लिए मजबूर नहीं कर रही है। तुम स्वतंत्र हो। तुम वास्तविक होने को चुन सकते हो; तुम इसके लिए कुछ न करने को भी चुन सकते हो। मनुष्य एक बीज की तरह पैदा होता है। कोई भी मनुष्य भरा-पूरा, आप्तकाम होकर नहीं पैदा होता है, सिर्फ आप्तकाम होने की संभावना साथ लाता है।
अगर यह बात है, और यही बात है, तब आत्मोपलब्धि एक बुनियादी आवश्यकता हो जाती है। क्योंकि तुम जब तक आप्तकाम नहीं होते, जब तक वह नहीं होते जो हो सकते हो या जो होने को पैदा हुए हो, जब तक तुम्हारी नियति पूरी नहीं होती, यथार्थ नहीं होती, जब तक तुम्हारा बीज भरा-पूरा वृक्ष नहीं बन जाता, तब तक तुम्हें लगेगा कि तुम कुछ खो रहे हो, तुम में कुछ कमी है।
प्रत्येक व्यक्ति को यह महसूस होता है कि वह कुछ खो रहा है। यह खोने का भाव इसलिए है कि तुम अभी वास्तविक नहीं हुए हो। बात ऐसी नहीं है कि तुम धन का या पद-प्रतिष्ठा का या शक्ति का अभाव अनुभव करते हो। अगर तुम्हें वह सब मिल भी जाए जो तुम मांगते हो – धन, सत्ता, प्रतिष्ठा या जो भी, तो भी तुम सदा अपने भीतर कोई अभाव अनुभव करते रहोगे। क्योंकि वह अभाव किसी बाहरी चीज से संबंधित नहीं है। जब तक तुम आप्तकाम न हो जाओ, जब तक ऐसी उपलब्धि या खिलावट या आंतरिक परितोष को न प्राप्त हो जाओ जहां कह सको कि यह वही है जो होने को मैं बना था, तब तक यह अभाव खटकता रहेगा और तुम इस अभाव के भाव को किसी भी दूसरी चीज से दूर नहीं कर सकते।
तो आत्मोपलब्धि का अर्थ है कि एक आदमी वहीं हो गया है जो उसे होना था। वह एक बीज की तरह पैदा हुआ था और अब उसका फूल खिल गया, वह पूर्ण विकास को, आंतरिक विकास को, आंतरिक मंजिल को पा गया। जिस क्षण तुम पाओगे कि तुम्हारी सभी संभावनाएं वास्तविक हो गईं उस क्षण तुम जीवन के शिखर को, प्रेम के शिखर को, स्वयं अस्तित्व के शिखर को अनुभव करोगे।
अब्राहम मैशलो ने इसके लिए सेल्फ एक्चुअलाइजेशन शब्द का उपयोग किया है। एक और शब्द का आविष्कार किया है, वह शब्द है, पीक-एक्सपीरिएंस ‘शिखर-अनुभव”। जब कोई स्वयं को उपलब्ध होता है तो वह शिखर को, आनंद के शिखर को उपलब्ध होता है।
तब किसी भी चीज की खोज बाकी नहीं रह जाती, तब वह अपने साथ पूर्णत: संतुष्ट होता है। अब कोई कमी नहीं रही, कोई चाह, कोई मांग, कोई दौड़ नहीं रही। वह जो भी है वह अपने साथ संतुष्ट है। आत्मोपलब्धि शिखर-अनुभव बन जाती है, और सिर्फ आत्मोपलब्ध व्यक्ति ही शिखर-अनुभव को प्राप्त हो सकता है।
तब वह जो कुछ भी करता है, जो कुछ भी छूता है, जो कुछ भी करता है या नहीं करता है, मात्र होना भी उसके लिए शिखर-अनुभव है। होना मात्र आनंदित होना है। तब आनंद का किसी बाहरी वस्तु से लेना-देना नहीं है, वह आंतरिक विकास की महज उपज है, उप-उत्पत्ति है।
बुद्ध आत्मोपलब्ध व्यक्ति हैं। यही कारण है कि हम बुद्ध, महावीर या उन जैसे लोगों के चित्र या मूर्ति पूरे खिले हुए कमल पर बैठे हुए बनाते हैं। वह पूर्ण खिला हुआ कमल आंतरिक खिलावट का शिखर है। भीतर वे खिल गए हैं, और पूरी तरह खिल गए हैं। वह आंतरिक खिलावट उन्हें प्रभामंडित करती है; उनसे आनंद की सतत वर्षा होती रहती है। और जो भी उनकी छाया के नीचे आते हैं, जो भी उनके पास आते हैं, वे उनके चारों ओर एक शाति का माहौल अनुभव करते हैं।
महावीर के संबंध में एक दिलचस्प विवरण है। कहा जाता है कि जब महावीर चलते थे तो ‘उनके चारों ओर चौबीस मील के दायरे में सभी फूल खिल जाते थे। अगर फूलों का मौसम भी नहीं होता तो भी फूल खिलते थे।”
यह महज काव्य की भाषा है। लेकिन अगर कोई व्यक्ति आत्मोपलब्ध नहीं था और वह महावीर के संपर्क में आता तो उनकी खिलावट उसके लिए संक्रामक हो जाती और वह अपने भीतर भी खिलावट अनुभव करता।
अगर किसी व्यक्ति के लिए यह उचित मौसम नहीं होता, अगर वह तैयार भी नहीं होता, तो भी वह उनकी खिलावट को प्रतिबिंबित करता, उसके भीतर उस खिलावट की प्रतिध्वनि महसूस होती। अगर महावीर किसी व्यक्ति के निकट होते तो वह अपने भीतर एक प्रतिध्वनि महसूस करता और उसे उसका आभास मिलता जो वह हो सकता था।
आत्मोपलब्धि, सेल्फ एक्चुअलाइजेशन बुनियादी आवश्यकता है। बुनियादी कहने से मेरा मतलब है कि अगर तुम्हारी सभी जरूरतें भी पूरी हो जाएं, सिर्फ आत्मलाभ, आत्मोपलब्धि न हो, तो तुम रिक्त और खाली महसूस करोगे। इसके विपरीत अगर आत्मलाभ हो जाए और बाकी कुछ भी नहीं, तो भी तुम अपने भीतर गहरी, पूरी संतुष्टि अनुभव करोगे। यही कारण है केंद्रित, संतुलित कि बुद्ध भिखारी होते हुए भी सम्राट थे।