यह संसार कारागृह नहीं है। यह संसार परमात्मा की अभिव्यक्ति है। यह संसार परमात्मा से भिन्ना नहीं है, विपरीत तो बिलकुल नहीं है। कहीं चित्रकार से विपरीत होता है उसका चित्र? और कहीं संगीतज्ञ से विपरीत होता है उसका संगीत? और कहीं नर्तक से विपरीत होता है उसका नृत्य? और अगर तुम चित्र की निंदा करोगे, तो क्या तुम सोचते हो कि चित्र की निंदा करके तुम चित्रकार की प्रशंसा कर रहे हो? चित्र की निंदा में चित्रकार की निंदा हो गई। चित्र की प्रशंसा में चित्रकार की प्रशंसा होती है।
तुम्हारे अब तक के तथाकथित पंडित-पुरोहित तुम्हें जीवन-निषेध सिखाते रहे हैं, जीवन-विरोध सिखाते रहे हैं। उन्होंने तुम्हें नहीं का भाव, नकार का भाव तुम्हारे हृदय में भर दिया है। और नकार मृत्यु है, जीवन नहीं। नकार में सड़ सकते हो, खिल नहीं सकते। नकार जहर है, अमृत नहीं।
मैं तुम्हें जीवन का विधेय देता हूं। मैं सिखाता हूं जीवन का स्वीकार। यह जीवन परमात्मा की अनुपम भेंट है। न तो इसे तोड़ना, न इसे नष्ट करना और न इसे किसी क्षुद्र मानवीय धारणा पर समर्पित करना। मंदिर आदमियों के बनाए हुए हैं, जल जाएं, आदमियों को मरने की जरूरत नहीं है।
फिर मंदिर बना लेंगे। मस्जिदें आदमी की बनाई हुई हैं। किताबें आदमी की बनाई हुई हैं, आदमी भर आदमी का बनाया हुआ नहीं है। इसलिए आदमी को किसी भी चीज पर न्योछावर नहीं किया जा सकता। आदमी का मूल्य परम है। आदमी के ऊपर कुछ भी नहीं है।
चंडीदास का प्रसिद्ध वचन है – साबार ऊपर मनुष सत्य, ताहार ऊपर नाहीं। सबसे ऊपर है मनुष्य का सत्य, उसके ऊपर कुछ भी नहीं। साबार ऊपर मानुष सत्य…।
सबसे ऊपर है मनुष्य का सत्य, इसकी उदघोषणा करो! चढ़ जाओ मकानों की मुंडेरों पर, गांव-गांव, द्वार-द्वार, घर-घर इसकी घोषणा करो ‘साबार ऊपर मानुष सत्य!” मनुष्य के सत्य से ऊपर कोई और सत्य नहीं है। तब बदलेगी कुछ बात। यह आवागमन से छूटने की बकवास, यह संसार को पाप और पाप का फल कहने की बकवास, लोगों के जीवन को विषाक्त करने की चेष्टा – ये आधार हैं तुम्हारी बीमारी के।
लक्षणों की मैं बात नहीं करता। सिक्ख और निरंकारी, हिंदू और मुसलमान, जैन और बौद्ध – ये तो लक्षण हैं। ये तो कोई भी बहाने खोज रहे हैं। ये तो खूंटियां हैं! मैं तो तुम्हारे कोट की बात कर रहा हूं जो तुम खूंटी पर टांगते हो, खूंटियों की बात नहीं कर रहा।
खूंटी तो तुम्हें एक नहीं मिलेगी, तुम दूसरी जगह टांग दोगे। खूंटी बिलकुल न मिलेगी तो लोग दरवाजों पर टांग देते हैं, खिड़कियों पर टांग देते हैं। मगर कोट है तो कहीं न कहीं टांगेंगे। जब तक मनुष्य जैसा अब तक रहा है ऐसा ही रहेगा, तब तक ये उपद्रव जारी रहेंगे। मनुष्य को बदलना है।
इसलिए मैं गौण लक्षणों की चिंता नहीं करता। कोई असली चिकित्सक लक्षणों की चिंता नहीं करता, नकली चिकित्सक लक्षणों की चिंता करते हैं। जैसे किसी आदमी को बुखार चढ़ा है। नकली चिकित्सक होगा – वह कहेगा, इसका शरीर गरम हो गया है, ठंडे पानी में डाल दो, कि इसको फव्वारे के नीचे बिठा दो। शरीर गरम हो रहा है, ठंडा करना जरूरी है। शरीर तो ठंडा होगा कि नहीं, यह मरीज ही ठंडा कर देगा।