ईसाइयों का एक छोटा- सा समूह है- ‘क्वेकर’। वे अदालत में कसम नहीं खाते। उन पर कई मुकदमे चले हैं, सजाएं काटीं उन्होंने लेकिन अदालत में वे कसम नहीं खाते। क्वेकर कहते हैं कि जो झूठ बोल सकता है वह ऐसी कसम भी खा सकता है, फिर भी झूठ ही बोलेगा।
झूठ बोलने वाले को झूठी कसम खाने में अड़चन क्या है? बात तो ठीक कहते हैं कि जब कोई झूठ ही बोलता है तो उसकी कसम पर कैसे भरोसा करते हो? वह कसम भी झूठी खा लेगा। और वे यह भी कहते हैं कि चूंकि हम झूठ नहीं बोलते, इसलिए हम यह कसम कैसे खाएं कि हम झूठ नहीं बोलेंगे।
यह तो कसम खाने में हमने मान ही लिया है कि हम झूठ बोलते थे, कि हम झूठ बोलते हैं, कि हम झूठ बोल सकते हैं और हम कसम खा रहे हैं कि झूठ नहीं बालेगें।
क्वेकर कसम नहीं खाते। कोई सच्चा आदमी कसम क्यों खाए? कसम का तो मतलब ही यह हो जाता है कि बिना कसम खाए जो बोलते हैं वह झूठ है। फिर जो झूठ ही बोलता है उसे कसमों से क्या भेद पड़ेगा? याद रखना, जो आदमी बार-बार कहे कि मैं कसम खाता हूं, रामजी की दुहाई, कि गीता छू लें, कि बाइबिल पर हाथ रख दें, उस से तो सावधान ही हो जाना।
सच्चा आदमी कसम क्यों खाएगा? सच्चा आदमी सच बोलता है, इसकी दुहाई नहीं देता। इसको पुनरुक्त नहीं करना होता। लेकिन झूठे को खुद ही शक होता है। झूठे को भीतर लगा रहता है कि कौन मानेगा मेरी, चलो कुरान का सहारा ले लूं, कि बाइबिल का, कि गीता का, कि चलो राम को बीच में ले आऊं, कि कृष्ण को बीच में ले आऊं, अल्लाह को बीच में ले आऊं, शायद उनकी आड़ में काम बन जाए।
बहुत कसमें खाकर वह आदमी अपने झूठ को चलाने का उपाय बना रहा है, झूठ के लिए रास्ता बना रहा है। कसम खाना कोई अच्छा लक्षण नहीं है। कसम झूठे का लक्षण है। जो आदमी एक झूठ बोलता है, उसे फिर हजार झूठ बोलने पड़ते हैं।
अब एक झूठ को बचाने के लिए दूसरा झूठ बोलो, क्योंकि झूठ से सिर्फ झूठ ही बच सकता है। झूठ ही झूठ की सुरक्षा कर सकता है। फिर दूसरे झूठ को बचाने के लिए और दस झूठ बोलो और बोलते चले जाओ। कभी तुमने खयाल किया है, एक झूठ बोलकर तुम कितनी मुश्किल में पड़ गए हो?
फिर चौबीस घंटे खयाल रखना पड़ता है कि वह एक झूठ बोले हैं उसको बचाए रखना है, कहीं भूल-चूक से निकल न जाए। और निकल ही जाएगा। कितना बचाओगे? कब तक बचाओगे?
दिन में न निकलेगा तो रात में निकल जाएगा। मुल्ला नसीरुद्दीन एक रात नींद में एकदम बोलने लगा- ‘कमला! कमला!’ पत्नी एकदम चौंककर बैठ गई।
उसने सुना, कमला। संदेह तो उसे हो ही रहा था। संदेह तो पत्नियों को रहता ही है, उसके होने की कोई जरूरत ही नहीं होती। तो अब इस चुड़ैल का नाम भी पता चल गया-कमला। उसी वक्त हिलाकर मुल्ला को उठाया, बोली- ‘यह कमला कौन है?’ मुल्ला भी सजग हो गया।
पति सजग रहते हैं। जैसे स्त्रियां संदेह से भरी रहती हैं, ऐसे पति सजग रहते हैं। और जिसकी पत्नी जितने ज्यादा संदेह से भरी रहती है, वह पति उतना ही ज्यादा सजग रहता है, नींद तक में होश रखता है। समझ गया कि भूल हो गई।
उसने कहा कि यह कमला कोई नहीं है, घुड़दौड़ होने वाली है, उसमें एक घोड़ी का नाम है। खैर, बात किसी तरह रफा-दफा हो गई, दोनों सो गए। लेकिन इतनी आसानी से कोई पत्नी आश्वस्त तो होती नहीं। दूसरे दिन जब मुल्ला दफ्तर से वापस लौटा तो पत्नी ने कहा कि उस घोड़ी का फोन आया था…।
मुल्ला के पसीने छूट गए। पकड़े गए! फोन वगैरह आया नहीं था। लेकिन इतना कहने में ही पकडे गए। झूठ कितना भी छुपाओ, वह सामने आ ही जाता है।