ध्यान रखें, तब जीवन में दुर्घटनाएं होने लगती हैं Osho

अहंकार जीवन की मूलभूत समस्या है और प्रेम मूलभूत समाधान। इस बोधकथा में दोनों हैं; मनुष्य की समस्या भी और मनुष्य के लिए समाधान भी। पहले अहंकार को समझें। बच्चा पैदा होता है तब कोई अहंकार नहीं होता।
उसे कोई बोध नहीं होता ‘मैं’ का; बोध होता है अस्तित्व का, बोध होता है, ‘हूं’ का ऐसा बोध नहीं होता, सिर्फ हूं ऐसा बोध होता है। ‘मैं’ लेकिन कोई पैदा नहीं होता। लेकिन ‘मैं’ जीवन की जरूरत है, बिना ‘मैं’ के बच्चा बढ़ न पाएगा।
जरूरत ऐसी ही है, जैसे बीज के चारों तरफ एक सख्त खोल की जरूरत है। खोल बीज नहीं है, बीज तो भीतर छिपा है। लेकिन एक खोल चाहिए जो उसकी रक्षा करे, अन्यथा बीज ठीक भूमि पाने के पहले ही नष्ट हो जाएगा, मर जाएगा। तो चारों तरफ एक सख्त खोल उसकी रक्षा करती है।
रक्षक, भक्षक भी हो सकते हैं; जो खोल रक्षा करती है, वही खोल किसी दिन बाधा भी बन सकती है। जब हम बीज को बोएं और खोल इनकार कर दे कि अब मैं टूटूंगी नहीं, मैंने ही तुझे इतने दिनों तक बचाया, अब तू मुझे छोड़ता है? तो खोल, जो कि जीवन की रक्षा करती है, वही जीवन की हत्या हो जाएगी। अंकुर पैदा न हो सकेगा; अंकुर पैदा तभी होगा जब खोल टूटे।
इसलिए इस विरोधाभास को ठीक से समझ लें। खोल बचाती है, खोल मार सकती है। खोल बचाती है, जब तक अंकुर को ठीक भूमि नहीं मिली। ठीक भूमि मिलते ही खोल को टूट जाना चाहिए, तो उसका काम पूरा हुआ। मनुष्य का अहंकार अनिवार्य है।
बच्चे को अगर ख्याल न हो कि ‘मैं हूं’,आग से कैसे बचेगा? बाहर वर्षा होती होगी, कैसे भीतर आएगा? उसे पता ही न चलेगा कि मैं भीग रहा हूं। ‘हूं’ को तो कुछ भी भेद पता न चेलगा वर्षा में और स्वयं में। ‘हूं’ को तो कुछ भी भेद पता न चलेगा आग में और स्वयं में। ‘हूं’ की तो कोई सीमा नहीं, ‘हूं’ तो ब्रह्म स्वभाव है। वह असीम है।
खोल सीमा बनाती है। बच्चे को पता चलना चाहिए कि मैं भीग रहा हूं, भागूं, घर में छिप जाऊं। बच्चे को पता चलना चाहिए मैं जल रहा हूं, हाथ हटा लूं अन्यथा मृत्यु हो जाएगी। प्रत्येक बच्चे को समाज अहंकार देता है। हमें सिखाना पड़ता है कि तुम हो। तुम पृथक हो।
हमें सिखाना पड़ता है कि तुम अपने पैरों पर खड़े हो। हमें सिखाना पड़ता है, सहारे मत लो। बच्चा उसी दिन युवा हो जाता है, प्रौढ़ हो जाता है, जिस दिन वह अपने पैर खड़ा हो गया; अर्थ है-जिस दिन उसने अपने अहंकार को बना लिया षिक्षा से, संस्कार से, परीक्षाओं में प्रतिस्पर्धा से, जीत से, सफलता से।
हम उसके अहंकार को भरते हैं ताकि अहंकार उसे बचाए। उस दिन तक, जिस दिन तक, जिस दिन परमात्मा की भूमि मिलेगी प्रेम घटेगा और खोल टूटेगी और खोल टूटेगी और बच्चा पुनः विराट के साथ एक हो जायेगा। खतरा तब शुरू होता है जब यह खोल इतनी मजबूत हो जाती है- और इस खोल को हम अपना रक्षक न बनाकर अपनी आत्मा समझ लेते हैं। इस खोल को अपना कवच न बना कर अपना प्राण समझ लेते हैं, फिर हम इसे टूटने ही नहीं देते; फिर हम इसे बचाते हैं।
जो हमें बचाता, उसे हम बचाने में लग जाते हैं; वहीं भूल हो जाती है। अहंकार तुम्हें बचाए तब तक ठीक है। तुम अंहकार को बचाने लगो बस, उसी दिन भूल हो गई। अब अहंकार मूल्यवान हो गया, तुम खोल हो गए। जो मूलभूत है, वह गौण हो गया; जो गौण है, वह मूलभूत हो गया। वहीं भूल शुरू हो जाती है और तब जीवन में दुर्घटनाएं होने लगती हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *