श्री रमण से किसी ने पूछा था, क्या सीखूं कि मुझे प्रभु उपलब्ध हो जाए? श्री रमण ने कहा, सीखना नहीं है, भूलना है। बहुत स्मरण है, वही बाधा है। जब समस्त स्मरण छूट जाए। स्व-स्मरण जाग्रत हो जाता है।
किन्हीं ने पूछा है, जब बुद्धि असफल हो जाती है तो क्या हम श्रद्धा का सहारा न लें। श्रद्धा भी बुद्धि है। श्रद्धा बौद्धिक होती है। हम बड़ी मुश्किल में हैं दुनिया में। हम समझते हैं अश्रद्धा बौद्धिक होती है और श्रद्धा बौद्धिक नहीं होती है। अश्रद्धा भी बौद्धिक होती है, श्रद्धा भी बौद्धिक होती है। किससे श्रद्धा करते हैं? जो मानता है कि मैं ईश्वर को मानता हूं, वह किस चीज से मान रहा है ईश्वर को? तो वह बुद्धि से मान रहा है ईश्वर को।
जो कहता है, मैं ईश्वर को नहीं मानता, वह किससे नहीं मान रहा है? वह बुद्धि से नहीं मान रहा है। धार्मिक लोगों ने एक उलझाव पैदा कर दिया है। वे यह सोचते हैं कि श्रद्धा तो बौद्धिक नहीं है। और अश्रद्धा बौद्धिक है। अश्रद्धा भी बौद्धिक है और श्रद्धा भी बौद्धिक है।
अगर आपकी बुद्धि बिलकुल असफल हो जाए खोजने में और यह कह दे कि मेरी बुद्धि कुछ भी नहीं खोजती तो न वह बुद्धि श्रद्धा करेगी, न अश्रद्धा क्योंकि श्रद्धा भी खोज है, अश्रद्धा भी खोज है। जो यह कह रहा है, ईश्वर नहीं है, उसने भी कुछ खोज लिया। जो यह कह रहा है, ईश्वर है, उसने भी खोज लिया। दोंनो की बुद्धि सफल हो गयी।
अगर बुद्धि टोटल फेल्योर हो जाए तो आप सत्य को उपलब्ध हो जाएंगे। अगर बुद्धि यह कह दे कि मैं कुछ भी नहीं खोज पा रही, और बुद्धि पर से आस्था उठ जाए और बुद्धि से आप बिलकुल निराश हो जाएं तो आपके भीतर प्रज्ञा का जागरण हो जाएगा।