इस तरह भगवान की लीला समझने वाला जीते जी मुक्ति पा लेता है Osho

भारतीय गहरी खोज है कि परमात्मा के लिए सृष्टि का कोई काम नहीं है, कोई मतलब नहीं है, कोई प्रयोजन नहीं है सब खेल है। इसलिए हमने इसे लीला कहा है। लीला जैसा शब्द दुनिया में किसी भाषा में नहीं है। क्योंकि लीला का अर्थ होता है कि सारी सृष्टि एक निष्प्रयोजन खेल है। इसमें कोई प्रयोजन नहीं है।
लेकिन परमात्मा आनंदित हो रहा है, बस। जैसे सागर में लहरें उठ रही हैं, वृक्षों में फूल लग रहे हैं, आकाश में तारे चल रहे हैं, सुबह सूरज उग रहा है, सांझ तारों से आकाश भर जाता है। यह सब उसके होने का आनंद है। वह आनंदित है।
लीला का एक अर्थ यह भी है कि वही है इस तरफ, वही है उस तरफ; दोनों बाजियां उसकी। हारेगा भी, तो भी वही; जीतेगा तो भी वही। फिर भी मजा ले रहा है। हाइड एंड सीक, खुद को छिपा रहा है और खुद को ही खोज रहा है। कोई प्रयोजन नहीं है।
इसी तरह अगर हम जिंदगी को एक काम समझते हैं, तो हमारी जिंदगी में एक बोझ होगा। और अगर जिंदगी को हम खेल यानी लीला समझते हैं, तो जिंदगी निर्बोझ हो जाएगी। धार्मिक आदमी वह है, जिसके लिए सभी कुछ खेल हो गया। और अधार्मिक आदमी वह है, जिसके लिए खेल भी खेल नहीं है, उसमें भी जब काम निकलता हो कुछ, तो ही। धार्मिक आदमी वह है, जिसके लिए सब लीला हो गई। उसे कोई अड़चन नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है? ऐसा क्यों नहीं हो रहा है? यह बुरा आदमी क्यों है? यह भला आदमी क्यों है?
निष्प्रयोजन लीला की दृष्टि से, वह जो बुरे में छिपा है, वह भी वही है। वह जो भले में छिपा है, वह भी वही है। रावण में भी वही है, राम में भी वही है। दोनों तरफ से वह दांव चल रहा है। और वह अकेला है। अस्तित्व अकेला है।
इस अस्तित्व के बाहर कोई लक्ष्य नहीं है। इसलिए जो आदमी अपने जीवन में लक्ष्य छोड़ दे और वर्तमान के क्षण में ऐसा जीने लगे, जैसे खेल रहा है, वह आदमी यहीं और अभी परमात्मा का अनुभव करने में सफल हो जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *