ओशो कहते हैं, ‘मेरा जीवन ऐसा ही है कि अगर मैं अपने जीवन के बारे में बात करता हूं, तो उसका न तो आदि है और न ही अंत है। मेरे जीवन में आरंभ और अंत होगा ही नहीं। जैसे-जैसे मैंने विकसित होना आरंभ किया और मैं विकसित होता रहा हूं। मैं बूढ़ा नहीं हुआ। अपने जन्म से मैं विकसित हुआ हूं। ऐसा कभी मत सोचना कि मेरी आयु बढ़ रही है। केवल मूढ़ों की आयु बढ़ती है। अन्य प्रत्येक का विकास होता है।’
ओशो की 11 अनसुनी बातें…
ओशो को बातचीत शब्द बिल्कुल पसंद नहीं था। वह कहते थे कि यह मेरी लिए भद्दी बात है मेरा शब्द तो संवाद है।
ओशो का जन्म (11 दिसम्बर 193 -19 जनवरी 1990) का जन्म भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन शहर के कुच्वाडा गांव में हुआ था।
ओशो शब्द लैटिन भाषा के शब्द ओशोनिक से लिया गया है, जिसका अर्थ है सागर में विलीन हो जाना।
सन् 1960 के दशक में वे ‘आचार्य रजनीश’ के नाम से या ‘ओशो भगवान श्री रजनीश’ नाम से जाने गए।
पूर्व जन्म के बारे में बताते हुए ओशो कहते हैं कि उनका जन्म तिब्बत में हुआ था।
ओशो को अपने पूर्व जन्म का बोध था। इसीलिए सात सौ वर्ष पहले के पूर्व जन्म के कार्यों को पूरा करने के लिए उन्होंने अपने माता-पिता को स्वयं चुना था।
ओशो की जन्मपत्रिका देखकर वाराणसी के विद्वान ज्योतिषियों ने कहा था, यह बालक सात वर्ष से अधिक जीवित नहीं रहेगा और यदि बच गया तो इसके बुद्ध होने की संभावना है।
ओशो के पिताजी का कपड़ों का काम था। साथ ही उनके पास चौदह सौ एकड़ जमीन थी। जिस पर वह खेती करते थे। उस समय में भी ओशो के के पास अपना सुंदर मकान था। जिसमें सर्वसुविधायुक्त सुख सुविधाओं से संपन्न था।
ओशो घर में ग्यारह भाई-बहन थे, जिसमें ओशो ही थे जो अपनी मां को भाभी कहते थे तथा अपनी नानी को मां कहकर पुकारते थे।
ओशो के पिता ने भी ओशो से सन्यास लिया था जिस दिन उन्होंने संन्यास लिया था वह ओशो के पैर पकड़कर बहुत रोए थे।
आचार्य रजनीश ने अपना पहला शिविर 1964 में राजस्थान के कनकपुर में किया था।
I love osho जब भी मै osho के विचार सुनता हू तो मानो उनके संवादो मे खो हि जाता हू मुझे osho ji के विचार बहुत पसंद आते है ।