नए को करें स्वीकार Osho

हमारे सामने समस्या यह है कि जिंदगी रोज नए-नए सवाल खड़े कर देती है और हमारे पास पुराने समाधान हैं। अछूत के बारे में सवाल उठता है, तो हम मनुस्मृति खोल कर बैठ जाते हैं। तीन हजार साल पहले मनु ने क्या कहा है, उसका आज क्या उपयोग हो सकता है? जिंदगी का कोई सवाल उठता है, तो गीता खोलकर समाधान ढूंढा जाता है। यह सही है कि गीता समस्या का उत्तर है। अर्जुन के सामने जब सवाल उठ गया था, तब उसका जो उत्तर आया, वह गीता में है। लेकिन जब अर्जुन ने यह सवाल उठाया, तब श्रीकृष्ण ने कोई पुरानी किताब खोलकर उसके उत्तर नहीं दिए थे। वे चाहते तो वेद खोलकर सुनाने लगते अर्जुन को, लेकिन कृष्ण ने अर्जुन की समस्या का सामना किया और उसका जवाब दिया। हम वे जवाब लिखकर बैठे हुए हैं।
यह प्रवृत्ति ठीक नहीं। सवाल नए हैं, किताबें पुरानी हैं। किताबें कभी नई नहीं होतीं, वे लिख दी गईं, तभी पुरानी हो गईं। सभी उत्तर पुराने हैं, उत्तर देते ही वे पुराने हो जाते हैं। नई चेतना का अर्थ यह है कि उसके पास कोई बंधा हुआ उत्तर नहीं है, कोई बंधे हुए सूत्र नहीं हैं। उसके पास जागी हुई चैतन्य आत्मा है। उस आत्मा को वह सवाल के सामने खड़ा कर देता है। हम किसी को शीशे के सामने खड़ा कर दें, तो उसमें उसकी तस्वीर बन जाती है। आईने के पास अपनी कोई तस्वीर नहीं होती। उसके पास अपना कोई उत्तर नहीं है। नई चेतना का अर्थ है कि सवाल आईने की तरह हमारी चेतना के सामने स्पष्ट और साफ हो जाएं, जैसे वे वास्तव में हैं। लेकिन हमारे पास उत्तर पहले से मौजूद हैं। सच तो यह है कि सवाल को ठीक से समझ लेना ही उसका समाधान है। किसी सवाल को उसकी जड़ों तक समझ लेना उसका उत्तर है। जवाब तो चेतना से आ जाएगा, लेकिन सवाल को समझने का सवाल है। सवाल हम इसलिए नहीं समझ पाते, क्योंकि हमारे पास पहले से तय जवाब होते हैं।
हम वहीं ठहरे हैं, जहां मनु और गीता या फिर बुद्ध और महावीर ठहर गए हैं। हम उसके आगे नहीं बढ़े हैं। तीन हजार साल से हमारी चेतना एक चक्कर में घूम रही है। हमारे वेद पांच हजार वर्ष से ज्यादा पुराने नहीं हैं, लेकिन यह सुनकर लोगों को चोट लगती है। कोई 75 हजार वर्ष पुराना, तो कोई 90 हजार वर्ष पुराना सिद्ध करता है। कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो कहते हैं वे हमेशा से हैं, सनातन हैं। कुछ कहते हैं पहले वेद बना, उसके बाद सब बना। यह पीछे खींचने का पागल मोह क्या है? यह मोह इसलिए है, क्योंकि बहुत से लोग समझते हैं कि जो जितना पुराना है, उतना सत्यतर है, उतना शुद्धतर है। जो जितना नया है, उतना अशुद्ध है, उतना गलत है। वे मानते हैं कि पुराना होना बहुमूल्य बात है।
शराब के संबंध में कहावत है कि यह जितनी पुरानी होती है, उतनी अच्छी होती है। लेकिन हम सत्य के साथ भी शराब का व्यवहार कर रहे हैं। शराब जितनी सड़ जाती है, उतनी नशे वाली और खतरनाक हो जाती है, सत्य भी पुराना होकर जितना सड़ जाता है, उतना ही खतरनाक हो जाता है। जबकि सत्य रोज नया चाहिए।
एक सभा में मैं बोल रहा था। एक सज्जन खड़े होकर बोले – महावीर की उम्र ज्यादा बड़ी थी या बुद्ध की। मैं यह जानना चाहता हूं, क्योंकि मैं तीन साल से इस विषय पर शोध कर रहा हूं। मैंने कहा – मुझे यह जरूरत ही नहीं है यह जानने की किसकी उम्र बड़ी थी, लेकिन एक बात तो तय है कि तुम्हारी तीन साल की उम्र बेकार के काम में चली गई। कौन ज्यादा पुराना है, यह सिद्ध करने में लोग लगे हैं।
पुराने का मोह अकारण नहीं है। पहली बात तो यह है कि पुराना सुरक्षित है, उसमें सुरक्षा है। वह जाना-माना है। वह परिचित है। वह शास्त्र में लेखाबद्ध है। वह लीक पीटा हुआ है, उस पर जाने में डर नहीं है। नया हमेशा खतरनाक लगता है, पता नहीं क्या हो? यह लीकबद्ध नहीं है, सीमाबद्ध नहीं है। कोई नक्शा नहीं है। इसलिए नए में डर मालूम होता है, असुरक्षा मालूम पड़ती है। जो कौम जितनी निर्भय होती है, वह उतने ही नए की खोज करती है। नए का साहस होता है उसमें। जो नहीं जाना है, उसे जानना है। निश्चित ही उसमें खतरे हैं। हो सकता है नया रास्ता गड्ढों में ले जाए, खतरों में ले जाए, ऐसी जगह ले जाए, जहां जिंदगी मुश्किल में पड़ जाए। नया खतरे में ले जा सकता है। पुराना पहचाना हुआ है। उसी रास्ते से हजारों बार गुजरे हैं। उस पर चलने में सुविधा है, सुरक्षा है। जीवन जितना सुरक्षित हो जाता है, उतना ही मर जाता है। जितनी असुरक्षा को वरण करने की हिम्मत हो, जीवित उतना ही जीवंत होता है।
जीवन स्वयं एक असुरक्षा है। सुरक्षित वही हैं, जो गुजर चुके हैं। उनका अब कुछ नहीं बिगाड़ा जा सकता। मरने के बाद आप बीमार नहीं पड़ सकते, कोई अपराध या पाप नहीं कर सकते। मरने के बाद नया कुछ नहीं होगा। जो हो गया, सब चीजें वहीं ठहर जाएंगी। एक तारीख, दो तारीख नहीं आएगी। अब सिर्फ इतिहास होगा, भविष्य नहीं होगा। भविष्य जीवंत है, पर खतरनाक है।
इसीलिए जीवन में जितनी असुरक्षा है, उतना ही वह जीवंत है। जो जीवन को प्रेम करते हैं, वे असुरक्षा को भी प्रेम करते हैं। जीवन का प्रेम अनिवार्य रूप से खतरे का प्रेम है। जो लोग जीवन को प्रेम नहीं करते, वे सुरक्षा को प्रेम करते हैं।

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