किसकी प्रतीक्षा कर रहे हो, मौत के अतिरिक्त कोई भी नहीं आएगा। किन सपनों में खोए हो! इसे हम समझें। जीवन को हमने देखा नहीं, हमने बड़े सपनों की बारात सजायी है।
हम किस दुल्हन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। विवाह रचाने की बड़ी योजना बना रखी है। हम खूब-खूब कल्पना किये बैठे हैं-ऐसा हो, ऐसा हो। इसकी वजह से हम देख नहीं पाते कि कैसा है! तुम्हारा रोमांस, तुम्हारा कल्पनाओं की जाल सत्य को प्रगट नहीं होने देता।
आंख खाली करो, जरा सतेज होकर देखो, जरा सपनों को किनारे हटाकर देखो। वही देखो, जो है। तो तुम्हें पैदा होते बच्चे में मरता हुआ आदमी दिखायी पड़ेगा। तो तुम्हें सुदंरतम देह के भीतर बुढ़ापा कदम बढ़ाता हुआ मालूम होगा।
जो गहरे देखेगा, वह जीवन में मौत को देख लेगा। यही बुद्ध कहते हैं कि जरा गहरे देखो, चमड़ी के धोखों में मत आ जाओ। जरा और गहरे उतरो, जरा भीतर का दर्शन करो।