ऐसी सोच रखने वाले आत्मघात की ओर बढ़ जाते हैं Osho

श्रद्धा मनुष्य के जीवन की सर्वाधिक मूल्यवान वस्तु है। जिसके जीवन में श्रद्धा, उसके जीवन में सब कुछ है। क्योंकि उसके जीवन में परमात्मा की छाया पडे़गी। उसे अदृश्य शक्ति प्रभावित करेगी। ऐसे व्यक्ति के हृदय में काव्य उठेगा। उसके प्राणों में बांसुरी बजेगी।
उसे ध्यान भी फलेगा, उसे समाधि भी मिलेगी। उसका जीवन सार्थक होगा। और जिसके जीवन में श्रद्धा नहीं है उसका जीवन व्यर्थ होगा। तर्क के सहारे अगर चले तो आज नहीं कल सिवाय आत्महत्या करने के और कुछ बचता नहीं है।
इसलिए पश्चिम के विचारक जो तीन सौ साल से तर्क के सहारे चल रहे हैं, आत्महत्या पर पहुंच गए हैं। पश्चिम के बहुत बड़े विचारक अलबर्ट कामू ने लिखा है कि मुझे तो आत्महत्या ही सबसे महत्वपूर्ण दार्शनिक समस्या मालूम पड़ती है। आदमी अपने को मिटा क्यों न ले, होने में सार क्या है?
उठे रोज, नाश्ता किया, गये दुकान, कि दफ्तर, दिन-भर मेहनत की, सांझ हुए फिर आ गए पिटे-कुटे। फिर भोजन कर लिया, सो गए, फिर सुबह उठे। अगर यही-यही है तो देख लिया बहुत, तो हो गया बहुत। एक सीमा होती है, अब इसी-इसी को क्यों दोहराए जाना? इसमें सार क्या है?
अगर यही है तो सार बिलकुल नहीं है। और तर्क कहता है कि बस यही है। तर्क का अंतिम सत्य आत्मघात है, और श्रद्धा का अंतिम सत्य अमृत जीवन है। चुन लो, जो रुची हो चुन लो। तुम अपने मालिक हो। जब तुम श्रद्धा छोड़कर तर्क चुनते हो तो तुम यह मत सोचना कि तुम परमात्मा का विरोध कर रहे हो; तुम अपना आत्मघात कर रहे हो।
जिस दिन फ्रेडरिक नीत्शे ने यह घोषणा की कि ईश्वर मर गया है, उस दिन ईश्वर नहीं मरा, लेकिन उसी दिन फ्रेडरिक नीत्शे पागल हो गया। ईश्वर कहीं मरता है किसी की घोषणा करने से? लेकिन एक घटना जरुर घटती हैः अगर ईश्वर मर गया तो जीवन में अर्थ क्या रह गया?
जरा सोचो, ईश्वर को हटा दो, तो उसी के साथ सारा सौंदर्य हट गया, सारा प्रेम हट गया, सारी प्रार्थना हट गयी। मंदिरों की घंटियां फिर न बजेंगी, पूजा के थाल फिर न सजेंगे, अर्चना फिर न हो सकेगी-सब हट गया। जीवन में जो भी मूल्यवान था,‘ईश्वर’ एक शब्द को हटा देने से सब हट जाता है।
फिर बचा क्या? कूड़ा-करकट! फिर बैठे हो तुम रद्दी के ढेर पर। फिर सार कहां है? फिर तुम्हारा जीवन एक दुर्घटना मात्र है। फिर अभी मरे कि कल मरे, क्या फर्क पड़ता है? फिर जीना कायरता है। फिर कोई सार नहीं। फिर क्यों जीते रहना, फिर क्यों दुख झेलना? फिर अपने ही हाथ से समाप्त क्यों न कर लें?
नीत्शे पागल हुआ और यह पूरी सदी पागल हो जा रही है। क्योंकि इस पूरी सदी ने नीत्शे पर भरोसा कर लिया है। यह पहली बार मनुष्य-जाति के इतिहास में घटना घटी है कि लोग श्रद्धा का अर्थ पूछने लगे हैं। श्रद्धा का अनुभव नहीं रहा, इसलिए अर्थ पूछना पड़ता है।
लोग पूछने लगे हैं, प्रेम क्या है? क्योंकि प्रेम का अनुभव नहीं रहा। जिस दिन लोग पूछने लगें प्रकाश क्या है, समझ लेना कि लोग अंधे हो गए। जिस दिन लोग पूछने लगे संगीत क्या है, समझ लेना कि बहरे हो गए। और क्या होगा इसका अर्थ? श्रद्धा हमारी सूख गई है। हम बिलकुल बिना श्रद्धा के जी रहे हैं।

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